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________________ हिन्दी भाषा-टीका समेत: समय पुष्य अश्विनी मृगशीर्ष हस्त रेवती और श्रवण ये छ नक्षों हो तो गमन करना लाभ है ॥ नारचंद्र टीप्पनमें भी“चुथि नुमि चऊदिसिइ, जइ सनिधार लहति ।। एकइ कजिइ चलीया, कज सयाइ करति ॥१॥" चतुर्थी नवमी और चतुर्दशीको शनिवार हो तो एकही कार्यके लिये चले तो सभी ही कार्य कर आवे ॥ तारा बल--- ताराबल हि तमपक्खि, गणियं रिक्ख जम्म लेइ दिणरिक्खं । नन्दोइ भाग ठवियं, वडो अङ्काइ फल कहियं ॥ २३१ ॥ उत्तम मज्झिम अधमा, तारा कहिएहिं तिविह हीरेहिं । उत्तम चउ सड नवमी, मज्झिम अहमि य बीय पढमं ॥ २३२ ॥ अधम तीय पण सत्तम, चन्दबल तप पक्खे हि नहु होई । ताराबल गहियं, कंत विदेसि हि जं धरणी ॥ २३३ ॥ . भावार्थ-कृष्ण पक्षमें ताराका बल देखना चाहिये, जन्म नक्षत्रसे दिन नक्षत्र पर्यन्त गिनना उसको नवसे भाग देना शेष रहें वे तारा जानना। श्री हीर ज्योतिषीने उत्तम मध्यम और अधम ये तीन प्रकारकी तारा कही है-चौथी छटी और नवमी तोरा उत्तम है, पहिली दूजो और आठवीं तारा मध्यम है, तीसरी पांचवीं और सातवीं तारा अधम है । कृष्ण पक्ष चन्द्र का बल नहीं होता जिससे. ताराबल ग्रहण करना जैस-विदेशसे आये हुंए:पतिको स्त्री प्रेमसे ग्रहण करे वैसे ॥ २३१ से २३३ ॥
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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