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ज्योतिषसार 1
इन ग्रह जन्मके नक्षत्रमें विवाह नहीं करना, करे तो वैधव्य हो जावे, देशाटन करे तो मरण होवे, प्रतिष्ठा करे तो चैत्य (देवालय) का नाश हो जावे, किसी की भी सेवा करे तो निष्फल होवे, खेती करे तो निष्फल होवे, गृहप्रवेश करे तो अग्नि का उपद्रव हो, विद्यारम्भ करे तो मूर्ख बना रहे; नवीन वस्त्र पहिरे तो भस्म हो जाय, पंचमहाव्रतादि व्रत लेवे तो व्रत भंग हो जाते है । प्रसंगोपात व्रतादि लेने का मुहूर्त
" हत्थुत्तर सवण तिगं, रेवइ रोहिणि पुणव्वसुण दुगं । अणुराहा सम भणिया, सोलस आलोयणा रिक्खा ॥ १ ॥ आलोयणा तिहि नंदा, भद्दा जया य पुण्णा य । रवि ससि बुध गुरु सुक्का - वारा करणाण विट्ठि त्रिणा ||२||
भावार्थ - हस्त चित्रा स्वाति उत्तराफल्गुनो उत्तराषाढा उत्तराभाद्रपदा श्रवण धनिष्ठा शततारका रेवती अश्विनी रोहिणी मृगशीर्ष पुनर्वसु, पुष्य और अनुराधा ये सोलह नक्षत्र, नंदा भद्रा जया और पूर्णा थे तिथि, रविवार सोम बुध गुरु और शुक्र ये वार, विष्टि करण को छोड़कर बाकी के छ करण, ये सभी ही सम्यक्त्व के बारह व्रत लेने में, गुरु आगे प्रायश्चित् लेनेमें, योगसाधन में, तपश्चर्या करने में इत्यादिक शुभ कार्य में फल दायक है, आरम्भसिद्धि के तृतोय विमर्शमें श्लो० ३६ में भी कहा है कि“नियमालोचनायोग - तपोनन्द्यादि कारयेत् । मुक्त्वा तीक्षणोप्रमिश्राणि, वारौ चारशनैश्वरौ ॥” तीक्ष्ण उग्र और मिश्र संज्ञक नक्षत्रको तथा मंगल और शनि
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