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________________ . ज्योतिषसारः। पूर्वाफाल्गुनी रोहिणी स्वाति मधा और शतभिषा नक्षत्र, चतुर्थों नवमी चतुर्दशी और अष्टमी तिथि हो . तो शुभ होते हैं ॥ १५२ से १५८ ॥ तिथिवार नक्षत्र के शुभयोग यंत्र रवि...ह. उ० उ० उ० मू० पु० ध० अ० २० १-८- ६ सोम...पु० म० रो० अ० अनु० २- -- - - - • मङ्गल...२० म० अ० मू० अश्ले० उभ० ६-- ३---८- १३--. बुध...श्र० रो० पु० मृ० अनु• कृ० २- ७-- १२. 0--0 गुरु... पू३. पु० २० अ० वि० पुन० ह०-५-१०-११--१५-० शुक...उषा० अ०२० अ० पुन० ह० पूफा० १३---१---६--११--० शनि...श्र० पूफा० रो० स्वो० म० श. ४-६-१४-८--0-0 अथ तिथि वार नक्षत्र अशुभ योग----- रवि छठ्ठी सत्तमि या, बारिसि चउदिसी गारिसी जिट्टा । अणुराहा य विसाहा, मघ भरणी जोगि असुहाई १५६ ।। सोम गारिसि सत्तमी, बारिसि चउदिसिय पुल्वसाढा यं। उतरसाढा चित्ता, विसाखाह जोगे हि असुहाई ॥१६॥ भोमे दसमी पडिवा, एगारिसि अद्द उतरासोढा। - धणिट्ठा सितभीस, पूभइ जोगे मिलिए हि असुहाई ॥ १६१ ॥ बुध तिया अड तेरिलि, पाडवा नवमी य चवदिसी मूल । रंवय अस्सणि भरणी, धणिहा अणुगह असुहाई ।। १६२ ।।
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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