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________________ हिन्दी भाषा-टीका समेतः। २१ जन्म नक्षत्र फल जम्म रिक्स ससि पसत्थं, सव्वे कम्मे हिं मंगलायारे । , अपसत्थ पौर भेसज, विवाय वापसु गमणेसु ॥ ६१ ॥ भावार्थ-जन्म के नक्षत्र और चंद्रमा सब मांगलिक कार्य में प्रशस्त हैं और नगर संबंधि कार्य औषध विवाद यात्रा (गमन) इत्यादिकमें अप्रशस्त हैं ॥ ६१॥ . लघुदिन शुद्धिः-- चित्ताइ मास उभयं, अहिया दिण मेलि भाग सग देखें। दिण नामसग विचारिय, सिरिय१ कलहे २ य आणंद॥६॥ मिय४ धम्म५ तपस६ विजयंड, सिरियं धन लाहु कलह जुद्धेयं । आणंदणंदकारी, मियउ मिश्चाई य होइ ॥६३ ॥ धम्मोइ धम्मभावं, तपसो समभावं विजय रिउनासं। दिण सुद्धी लहु एय, नेया सव्वे हिं कज्जे हिं ।। ६४ ।। भावार्थ-चैत्रादि गत मासको द्विगुणा करना, उसमें वर्ग: मान मास के गत दिन मिलाकर सातका भाग देना जो शेष बचे उसका अनुक्रमसे सात नाम--श्री १ कलह २ आणंद ३ मृत्यु धर्म ५ तपस ६ विजय ७ । इनका फल-श्री-धनका लाभकारक, कलह-युद्धकारक, आणंद-आणंदकारक, मृत्यु-मृत्युकारक, धर्म 'धर्मभावकारक, तपस्-समभावकारक, विजय-शत्रुनाश कारक होते है ॥६२ से ६४ ॥
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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