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(५०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
तन्मज्जा मधुरा वृष्या बृंहणी वातपित्तहा । वतमारुष्करं स्वादु पितघ्नं केश्यमग्निकत ॥२३॥ भल्लातकः कषायोष्णः शुक्रलो मधुरो लघु । वातश्लेष्मोदरानाहकुष्ठाशग्रहणीगदान् ॥२३२॥ हंति गुल्मज्वरश्वित्रवह्निमांद्यकृमिव्रणान् । भल्लातक शन्द विलिङ्ग वाचक है। अरुष्क, अरुष्कर, पग्निक, अग्निमुखी, भल्ली, वीरवृतं और शोफकृत् यह भिलावेके नाम हैं। इसे हिन्दीमें भिलावा, फारसीमें बिलादुर और अंग्रेजीमें rarkingnut करते हैं। भिलावेके पके फल रस और पाकमें मधुर, हलके, कसैले, पाचन, स्निग्ध, तीक्ष्ण, उष्ण, छेदी, भेदनकर्ता, बुद्धिवर्धक और अग्निकारक हैं। तथा कफ, वात, व्रण, उदररोग, कुष्ठ, बवासीर, ग्रहणी, गुल्म, शोथ अफारा, ज्वर और कृमियोंको नाश करते हैं । भिलावेके फलोंकी मजा-मधुर, वीर्यवर्धक, शरीरपुष्टिकारक और वात पित्तके हरनेवाली है। भिलावेके फलों की उण्डिये मधुर, पित्तनाशक, केशों और जठराग्निको बढानेवाली होती हैं । भिकावे-कैसेले, गरम, वीर्यवर्धक, मधुर और हलके हैं। तथा वात, कफ, उदररोग, अफारा, कुष्ठ, बवासीर, गुल्म,ज्वर, श्वित्रकुष्ठ, मन्दाग्नी, कृमि और व्रोको दूर करनेवाले हैं । भिलावेका विधिरहित उपयोग करनेसे शरीरमें खुजली और सूजन मादि दारुण विकार उत्पन्न हो जाते हैं। दही, नारियनकी गिरी और तिलोंका नेप करनेसे और खानेसे भिलावेकी खुजली तथा विष शान्त होता है। २२८-२३२ ॥
भङ्गा गन्नामातुलानी मादनी विजया जया॥२३३॥ भङ्गा कफहरी तिक्ता ग्रहणी पाचनी लघुः। तीक्ष्णोष्णा पित्तला मोहमदवाग्वह्निवर्धनी ॥२३॥ भंगा, गंजा, मातुलानी, मादनी, विजया और जया यह भांगके नाम