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. (४८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। रक्तविकार, ज्वर, अतिसार और शोथके हरनेवाला है पठानी लोधके नामसे सब जगह प्रसिद्ध है ॥ २१६-२१८ ॥
रसोनः। लशनस्तु रसोनः स्यादुग्रगंधो महौषधम् । अरिष्टो म्लेच्छकंदश्च यवनेष्टो रसोनकः ॥२१९॥ यदामृतं वैनतेयो जहार सुरसत्तमात् । तदा ततोऽपतद्विदुः स रसोनोऽभवद्भुवि ॥ २२० ॥ पंचभिश्च रसैर्युक्तो रसेनाम्लेन वर्जितः। तस्माद्रसोन इत्युक्तो द्रव्याणां गुणवेदिभिः ॥२२१॥ कटुकश्चापि मूलेषु तिक्तः पत्रेषु संस्थितः। नाले कषाय उदिष्टो नालाग्रे लवणः स्मृतः॥२२२॥ बीजं तु मधुरः प्रोक्तो रसस्तद्गुणवेदिभिः । रसोनो बृंहणो वृष्यः स्निग्धोष्णः पाचनःसरः२२३ रसे पाके च कटुकस्तीक्ष्णो मधुरको मतः।
बलवर्णकरो मेधाहितो नेव्यो रसायनः ॥ २२४ ॥ हृद्रोगजीर्णज्वरकुक्षिशूलविबन्धगुल्मारुचिकासशोफान्। दुनोमकुष्ठानलसादजंतुसमीरणश्वासकफांश्च हंति २२५
लशुन, रसोन, उग्रगन्ध, महौषध, अरिष्ट, म्लेच्छकन्द, यवनेष्ट, रसोनक यह लशुनके नाम हैं । जब गरुड़जी देवनोकसे अमृत लेकर आये तो उनके मुखसे जोएक बिन्दु पृथ्वीपर गिराउससे रखोनकन्द (लशुन) उत्पन्न हुमा । क्योंकि अम्ल रससे रहित यह कन्द पांच रसोवाला होता है इसलिये इसको द्रव्यगुणके जाननेवानोंने रखोन कहा है। रसोन-मूलमें कटु, पोंमें तिक्त, नालमें कषाय, नालके अग्र भागमें नवण और बीजों में मधुर रसवाला. इसके