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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (४७) इसके पेड वर्षाऋतुमें उत्पन्न होते हैं, गरीब लोग इसके पत्तोका शाक भी खाते हैं । इसकी फलियों से मोठके समान बीज निकलते हैं, जो दहीमें मिलाकर स्वचा पर लगाने के काम पाते हैं ॥ २११-२१३॥
, अतिविषा। विषा स्वति विषा विश्वा शृंगी प्रतिविषारुणा २१४ शुक्लकंदा चोपविषा भंगुरा घुणवल्लभा । विषा सोष्णा कटुस्तिक्ता पाचनी दीपनी हरे२१५ कफपित्तातिसारामविषकासवमिक्रिमीन् । विषा, अतिविषा, विश्वा, ऋडी, प्रतिविषा, अरुणा, शुलकन्दा, उपविषा, भगुरा, घुणवल्लभा यह अतीसके नाम हैं। प्रतीस-किचित् उष्ण, कटु, तिक्त, पाचनकर्ता और अग्निदीपक है। तथा कफ, पिन्न, अतिसार, ग्रामविकार, विषविकार, खांसी, वमन और कृमिरोगको पूर करती है । रातिसार और बारीके ज्वरोंमें यह विशेष रूपसे प्रयुक्त किया जाता है। अतीम नामसे यह सब जगह प्रसिद्ध है ॥२१४ ॥२१॥
सावरलोध्रः । पटियालोध्रः। लोप्रस्तिल्लस्तिरीटश्च सावरो गालवस्तथा ॥२१६॥ द्वितीयः पट्टिकालोधः क्रमुकः स्थूलवल्कलः । जीर्णपत्रो बृहत्पक्षः पट्टी लाक्षाप्रसादनः ॥२१७॥ लोध्रो ग्राही लघुः शीतः चक्षुष्यः कफपित्तनुत् । कषायो रक्तपित्तामृग्ज्वरातीसारशोथहृत् ॥२१॥ लोध्र, तिल्ल, तिल्लक, तिरीट, सावर, गालव यह शावरलोधके नाम हैं। पट्टिकालोध्र, क्रमुक, स्थूलवल्कन, जीर्णपत्र, बृहत्पत्र, पट्टी और नाक्षाप्रसादन यह पटिया लोन या पठानीनोधके नाम हैं। लोध्र-ग्राही, इल का; शीतल, नेत्रोंको हितकारी, कफ-पितमाशक, कसैला, रक्तपित्त,