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(४६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । तत्फलं पित्तलं कुष्ठकफानिलहरं कटु ॥ २१ ॥ केश्यं त्वच्यं वमिश्वासकासशोथामपांडुनुत् । पवल्गुजा, बाकुची, सोमराजी. सुपर्णिका, शशिलेखा, कृष्णफला, सोमा, प्रतिफली, सोमवल्ली, कालमेषी और कुष्ठघ्नी यह बावचीके नाम हैं।
बावची-मधुर, तिक्त, कटुपाकी, रसायनकर्वी, विबन्धको दूर करने वाली, ठण्डी, रुचिकारक दस्तावर, कफ और रक्तपित्तको हरनेवाली, रुक्ष, हृदयको हितकारी, श्वास, कुष्ठ, प्रमेह, ज्वर और कृमियों को दूर करती है। वावचीके फल पित्तकारक, कुष्ठ कफ और वायुके हरनेवाले कटु, पेशोंको हितकारी, त्वचाको सुन्दर बनानेवाले, वमन, श्वास, कास, सूजन और पाण्डुरोगको हरनेवाले हैं। बावचीका श्वित्रकुष (फुलबहरी) के ऊपर विशेष रूपसे प्रयोग किया जाता है । इसे हिन्दीमें बावची और अंग्रेजीमें Esculent Fiacourtia कहते हैं । २०७-२१० ॥
चक्रमर्दः । चक्रमर्दः प्रपुन्नाटो दद्रुघ्नो मेषलोचनः ॥ २११ ॥ पद्माटः स्यादेडगजः चक्री पुन्नाट इत्यपि । चक्रमर्दो लघुः स्वादू रूक्षः पित्तानिलापहा२१२॥ हृयो हिमः कफश्वासकुष्ठदद्रुकृमीन हरेत् । हंत्युष्मं तत्फलं कुष्ठकंडुदद्रुविषानिलान् ॥२१३॥ गुल्मकासकृमिश्वासनाशनं कटुकं स्मृतम् । चक्रमर्द, प्रपुनाट, दद्रुघ्न, मेषलोचन, पद्माट, एडगज, चक्री, पुबाट, यह पनवाडके नाम हैं। पननाड-लका, स्वादु, कक्ष, पित्त और वायुके हरनेवाला, हदयको हितकारी, शीतल,कफ, श्वास, कुष्ठ, दगु, विष, वायु, कृमियोंको हरनेवाला है, इसके फल गरम हैं,कुष्ठ, कण्डुगु, विष,वायु, गुल्म, खांसी, कृमि और श्वास रोगको नष्ट करनेवाले हैं तथा कटु है।
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