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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (४३) हिन्दीमें इसे कुसुंभा, फारसीमें गुलेमास्कर और अंग्रेजीमें Officinal Carthamus कहते हैं। कुसुम्भा-वातकारक तथा कृच्छ, रक्त, पित्त और कफको दूर करता
कसैल, वसप, कमलाक्षा सा करता
लाक्षा। लाक्षा पलंकषालतो यावो वृक्षामयो जतु ॥१९॥ लाक्षा वा हिमा बल्या स्निग्धा च तुवरा लघुः । अनुष्णा कफपित्तात्रहिकाकासज्वरप्रणुत ॥१९६॥ व्रणोरक्षतवीसर्पकृमिकुष्ठगदापहा।
अलक्तको गुणस्त द्विशेषाद् व्यंगनाशनः ॥१९७॥ लाक्षा, पलंकषा, अलक्त, पाव, वृक्षामय, जतु यह लामाके संस्कृत : नाम हैं। हिन्दीमें इसे लाख, फारसी में इसे लाक और अंग्रेजीमें Shellac कहते हैं। लाक्षा-वर्णको उत्तम करनेवाली, शीतल, बलवर्धक, स्निग्ध, कसैली, अनुण्ण और कफ, पित्त, रक्तविकार हिचकी, कास, ज्वर, व्रण, उरक्षत, विसर्प, कृमि, कुष्ठ इन व्याधियोंको हरण करती है । मलतक (लाखका रस) भी लाक्षाके समान गुणोंवाली है किन्तु विशेषकरके स्वचाके छिभ्भ पौर छाइयों को नष्ट करतो है ॥ १९५-१९७ ॥
हाद्रिा। हरिद्रा कांचनी पीता निशाख्या वरवर्णिनी। कृमिना हलदी योषित्प्रिया हट्टविलासिनी॥१९८॥ हरिद्रा कटुका तिक्ता रूक्षोष्णा कफपित्तनुत । वर्ध्या त्वग्दोषमेहास्रशोथपांडुव्रणापहा ॥ १९९ ॥ हरिद्रा, काञ्चनी, पीता,निशाख्या, वरमणिनी, कृमिना, इनदी, योषिप्रिया, हट्टविनासनी यह हल्दीके नाम है। हिन्दीमें इसे हलदी, फार सीमें जर्दचोब और अंग्रेजीमें Turmeric कहते हैं।