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(४४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
हनदी-कटु, तिक्त, रूक्ष, गरम, कफ और पित्तको नष्ट करनेवाली, वर्गको उत्तम करनेवाली और स्वचाके दोष, प्रमेह, रक्तविकार, शोथ, पाण्डुरोग और व्रणोंको नष्ट करती है ॥ १९८ ॥ १९९ ॥
आम्रगन्धिहरिद्रा। दाभेदा सुगंधा च दारू दारुकदारु च । कर्पूरा पद्मपत्रा स्यात्सुरभी सुरनायका ॥२०॥ आम्रगंधिहरिद्रा या सा शीता वातला मता । पित्तहन्मधुरा तिक्ता सर्वकण्डूविनाशिनी ॥२०१॥ दार्वीभेदा सुगन्धा, दार्वी, दारुक, दारू, कर्पूरा, प्रद्मपत्रा, आम्रगन्धी सुरभी, सुरनायका. यह आम्बाहल्दीके नाम हैं। आम्बाहल्दी-शीतल, वातकारक, पित्तनाशक, मधुर, तिक्त और सब प्रकारकी कण्डु (खुजली) को दूर करनेवाली है। पम्पिया हल्दी के नामसे प्रसिद्ध है ॥ २००॥२०१॥
___ अरण्यहरिद्रा। अरण्यहलदीकंदः कुष्ठवातास्रनाशनः । भरण्यहल्दी अर्थात् जंगल में होनेवाली हल्दीका कन्द-कुष्ठ आर वातरक्तको दूर करता है, यह वनहल्दोके नामसे प्रसिद्ध है।
दारुहरिद्रा । दार्वी दारुहरिद्रा च पर्जन्या पर्जनीति च ॥२०२॥ कटंकटेरी पीता च भवेत्सैव पचंपचा। सैव कालीयकः प्रोक्तस्तथा कालेयकोऽपिच ॥२०३॥ पीतश्च हरिश्च पीतदारुश्च पीतकम् । दार्वी निशागुणा किंतु नेत्रकर्णास्यरोगनुत् ॥२०॥ दार्वी,दारुहरिद्रा, पर्जन्या पर्जनी, कटंकटेरी, पीता, पचम्पचा, कालीयक, कालेपक, पीतदु, हरिद्रु पीतदारु, पीतक यह दारुहल्दीके नाम हैं। 'सिमलेके पहाडोंमें कस्मलके नामसे प्रसिद्ध nam