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(४२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
धातकी, धातुपुष्पी, वह्निज्वाला, यह धातकीके संस्कृत नाम हैं। हिन्दीमें इसे धायके फल और अंग्रेजीमें Woodfaraha. Floribunda कहते हैं।
धायके फूल-कटु, शीत, मदकारक, कसैले, हलके तथा प्यास, प्रतिसार, पित्त, रक्तविकार, विष, कृमि पौर विसर्पको जीतनेवाले हैं॥१८९॥ १९०॥
मंजिष्ठा। मंजिष्ठा विकसा जिंगी समंगा कालमेषका । मंडूकपर्णी मंडीरी भंडी योजनवल्ल्यपि ॥ १९१ ॥ रसायन्यरुणा काला रक्तांगी रक्तयष्टिका । मंडीतकी च गंडीरी मंजूषा वस्त्ररंजनी ॥ १९२ ॥ मंजिष्ठा मधुरा तिक्ता कपाया स्वरवर्णकृत् । गुरुरुष्णा विषश्लेष्मशोथयोन्यक्षिकर्णरुक् ।।१९३॥ रक्तातीसारकुष्ठात्रबीसपत्रणमेहनुत् ।। मंजिष्ठा, विकसा, जिङ्गी, समझा, कालमेषिका, मण्डूकपर्णी,मण्डीरी, भण्डी, योजनवल्ली, रसायनी, अरुणा, काळा, रक्ताङ्गी, रक्तयष्टिका, मण्डीतकी, गण्डीरी, मंजूषा, वस्वरंजनी यह मंजिष्ठाके संस्कृत नाम हैं। इसे हिन्दी में मॅजीठ, फारसीमें सनास और अंग्रेजीमें Madderroot कहते हैं। . मजीठ-मधुर, तिक्त, कसली; स्वर और वर्ण के लिये उत्तम, भारी, उष्ण तथा विष, श्लेष्म, शोथ योनि, अक्षि तथा कानोंके रोग, रक्तातिसार, कोट, रक्तविकार, विसर्प तथा व्रण और मेहको नष्ट करती है। १९१-१९३॥
कुसुभम् । स्याकुसुंभं वह्निशिखं वस्त्ररंजकमित्यपि ॥१९॥ कुसुमं वातलं कृच्छरक्तपित्तकफापहम् । कुसुंभ, वह्निशिखा तथा वखरञ्जक यह कुसुभके सस्कृत नाम हैं।