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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३५) सन्निपातज्वरश्वासकफपित्तास्रदाहनुत् ॥ १५८ ॥
कासशोथतृषाकुष्ठरव्रणकृमिप्रणुत् । किराततिक्त, कैरात, कटु तिक्त, किरातक, काण्डतिक्त, अनार्यतिक भूनिम्ब, रामसेनक यह चिरायतेके नाम हैं। इसी प्रकारका चिरायता जो नेपाल देशमें उत्पन्न होता है उसको अतिक्त और ज्वरांतक कहते हैं। इसको हिंदीमें चिरायता, फारसी, नेनीहादा तथा अंग्रेजीमें Chireta कहते हैं। चिरायता-दस्तावर, रूक्ष, शीतल, तिक्त, हलका तथा सन्निपातज्वर श्वास, कफ, पित्त रक्तविकार, दाह, खांसी, शोथ, तृषा, कुष्ठ, ज्वर, व्रण तथा कृमि इनको नष्ट करता है ॥ १५६-१५८ ॥
इन्द्रयवम् । उक्तं कुटजबीजं तु यवमिंद्रयवं तथा ॥ १५९ ॥ कलिंगं चापि कालिंग तथा भद्रयवं स्मृतम् । कचिदिन्द्रस्य नामैव भवेत्तदभिधायकम् ॥ १६०॥ फलानीन्द्रयवास्तस्य तथा भद्रयवा अपि। कुटजबीज, यव इन्द्रयव, कलिंग, कालिंग तथा भद्रयव यह इन्द्रजौके नाम हैं। यह अमरकोशमें लिखा है। भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं कि इन्द्रके सम्पूर्ण नाम इन्द्रजौके पर्यायवाचक शब्द होते हैं । जैसे शक्र, इन्द्र, इन्द्रयव और भद्रयव इत्यादि। इसे हिन्दीमें इन्द्रजौ, फारसीमें जवान कुचिस्क और अंग्रेजीमें Rosebay कहते हैं ॥ १५९ ॥ १६० ॥
इन्द्रयवं त्रिदोषघ्नं संग्राहि कटु शीतलम् ॥१६॥ ज्वरातीसाररक्तार्श कृमिवीसर्पकुष्ठनुत् । दीपनं गुदकीलास्रवातास्रश्लेष्मशूलजित् ॥१६२॥ इन्द्रजौ-त्रिदोषनाशक, ग्राही, कटु, शीतल तथा ज्वर, अतिसार,रक्तविकार, अश, कृमि, विसर्प तथा कुष्ठको करनेवाला, अग्निदीपक,