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(३४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । फ्लि, और कफको नष्ट करनेवाली है । यह ज्वरमें दी हुई सर्वदा पथ्य तथा कोठेको शुद्ध करनेवाली होती है ॥ १५०-१५२ ॥
कट्वी। कट्वी तु कटुका तिक्ता कृष्णभेदा कटंभरा॥१५३॥ अशोका मत्स्यशकला चक्रांगी शकुलादनी। . मत्स्यपित्ता कांडरुहा रोहिणी कटुरोहिणी॥१९॥ कटुका कटुका पाके तिक्ता रूक्षा हिमा लघुः। भेदनी दीपनी हृद्या कफपित्तज्वरापहा ॥ ११९ ॥ प्रमेहश्वासकासास्रदाहकुष्ठकृमिप्रणुत् । कवी, कटुका, तिक्ता, कृष्णभेदा, कटंभरा, अशोका, मत्स्यशकला, चक्रांगी, शकुलादनी, मत्स्यपित्ता, काण्डरुहा, रोहिणी कटुरोहिणी यह कटवीके नाम हैं । इसे हिन्दीमें कटुकी, कुटकी, कटु, फारसीमें खर्त केसियाह और अंग्रेजीमें Black Hellhare कहते हैं।
कुटकी-पाकमें कटु, तिक्त, रूक्ष, शीतल, हलकी, मलको भेदन करने वाली, अग्निदीपक, हृदयको प्रिय तथा कफपित्तज्वर, प्रमेह, श्वास, खांसी, रक्तविकार, दाह, कुष्ठ तथा कृमी इनका नाश करनेवाली है ॥१५३-१५५।।
किरातः। किराततिक्तः कैरातो कटुतिक्तः किरातकः॥१६॥ कांडतिक्तोऽनाय्यतितो भूनिंबो रामसेनकः । किरातकोऽन्यो नेपाल सोऽईतितो ज्वरांतकः १५७ किरातः सारको रूक्षः शीतलस्तिक्तको लघुः।