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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । अथ प्रोष्ठी शफरी (पुंठी ) । प्रोष्ठी तिक्ता कटुः स्वादुः शुक्रघ्नी कफवातजित् । स्निग्धास्यकण्ठरोगघ्नी रोचनी च लघुः स्मृता ११७
प्रोष्ठी ( शफरी) मछली- कडवी, चरवरी, स्वादु, वीर्यनाशक, कफ तथा वातको जीतनेव ल', स्निग्ध, मुखकी विरसता तथा कण्ठरोगनाशक, रुचिकारी और हलकी है ॥ ११७ ॥
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अय क्षुद्रमत्स्याः |
क्षुद्रा मत्स्याः स्वादुरसा दोषत्रय विनाशनाः । लघुपाका रुचिकरा बलदास्ते हिना मताः ॥ ११८ ॥ छोटी मछली-स्वादु, त्रिदोषनाशक, पाकमें हलकी, रुचिकारी, बल दायक और हितकारी है ॥ ११८ ॥
अथ अतिक्षुद्रमत्स्याः । अतिसुक्ष्माः पुंस्त्वहरा रुच्या कामानिलापहाः ११९ बहुत छोटी मछली- पुरुषतानाशक, रुचिकारी, खाँसी और यातनाशक है ॥ ११९
अथ मत्स्याण्डः ।
मत्स्यगर्भो भृशं वृष्यः स्निग्धः पुष्टि करो लघुः कफमेदः दो बल्यो ग्लानिकृन्मेहनाशनः ॥ १२० ॥
मछलीका भंडा - अत्यन्त वृष्य, स्निग्ध, पुष्टिकारक, हलका, कफ तथा मेववर्द्धक, बलदायक, ग्लानिकारक और प्रमेहनाशक है ।। १२० ॥
अथ शुष्कमत्स्याः (सूखी मछली ।
शुष्कमत्स्या नवा बल्या दुर्जरा विविबन्धिनः । सूखी हुई मछली - बलवर्द्धक, दुर्जर और मनरोधक है ॥ १२१ ॥