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________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । अथ एरङ्गी ( अरंगी ) । एरंगी मधुरः स्निग्धो विष्टंभी शीतलो लघुः ११२ परंगी मछली - मधुर, स्निग्ध, ग्मी, शीतल और हलकी है ।। ११२०अथ महाशफरी (पपता ) | ( महाशफरसंज्ञस्तु तिक्तः पित्तकफापहः । शिशिरो मधुरो रुच्यो वातसाधारणः स्मृतः ११३ ॥ ( ३९१ महाशफर (पता) मछली कडी, पिन तथा कफगशक, शीतल, मधुर, रुचिकारक और शयुके लिये साधारण है ॥ ११३ ॥ अथ गरी ( गई ) । गरघ्नी मधुरा तिक्ता तुवरा वातपित्तहृत । कफघ्नी रुचिकृल्लवी दीपनी बलवीर्यकृत् ॥ ११४ ॥ * गरनी ( गई ) मछली - मधुर, कडवी, कसैली, घात तथा पित्तनाशक, कफहारक, रुचिकारक, हलकी, अग्निप्रदीपक, और बल तथा वीर्यबर्द्धक है ॥ ११४ ॥ अथ मद्गुर : ( मंगुरी । मद्गुरो वातद्बल्यो वृष्यः कफकरो लघुः॥ ११५ ॥ मद्गुर (मँगुरी ) मछली - वातनाशक, बलदायक, वृष्य, कफकारक और हलकी है ।। ११५ ॥ अथ सपादमत्स्यः ( टेंगरा ) । सपादमत्स्यो मेधावन्मेदःक्षयकरश्च सः । वातपित्तकाश्चापि रुचिकृत्परमो मतः ॥ ११६ ॥ सपाद (टॅगग ) मछली- बुद्धिवर्धक, मेदका क्षय करनेवाली, वातपित्त तथा रुचिकारक है ॥ ११६ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034197
Book TitleHarit Kavyadi Nighantu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhav Mishra, Shiv Sharma
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1874
Total Pages490
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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