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(३९०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
अथ इल्लीसः (इल्सा )। इल्लीसो मधुरः स्निग्धो रोचनो वह्निवर्द्धनः। पित्तहकमकृत्किञ्चिल्लघुर्वृष्योऽनिलापहः॥१०६॥ इन्सा मछली-मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, अग्निगर्द्धक, पित्तनाशक, कफकारक, किचिव हलकी, वृष्य और वातनाशक है ॥ १०६ ।
अथ श कुली (सौरी)। शष्कुली ग्राहिणी हृद्या मधुरा तुपरा स्मृता १०७॥ सौरी मछली-ग्राही, हदयका प्रिय, धुर और कलैली है ॥ १०७ ॥
अथ गर्गरः (गर्गरा)। गर्गरः पित्तला किंचिद्रातजित्कफकोपनः ॥१०॥ गर्गरा मछली-पनकारक, किंचित वातनाशक और कफको कुपित करनेवाली है। १०८॥
अथ कविकः ( कई )। कविका मधुरा स्निग्ग कफना रुचिकारिणी । किंचित्पित्तकरी वातनाशिनी वह्निवर्द्धिनी ॥१०९॥ • कविका (कवई ) मछली -मधुर, स्निग्ध, कमकारक, रुचिकारक, किंचित पित्तकर्ना, वायुको नष्ट करनेवाली और अग्निवर्द्धक है । १०९ .
अथ वर्मिमत्स्यः (वर्मा)। वर्मिमत्स्यो हरद्वातं पित्तं रुचिकरो लघुः ॥११॥ धर्मी मछली-वातनाशक, पित्तहारक, रुचिकारक और हलकी है॥११॥
___ अथ दंडमत्स्याः (दडारी) दण्डमत्स्यो रसे तिक्तः पित्तरक्तं कर्फ हरेव । वातसाधारणः प्रोक्तः शुक्रलो बलवर्द्धनः ॥ १११॥ दंडारी मछली-समें कडवी, रक्तपित्र तथा करनाशक, वातके लिये साभारण और वीयको तथा बलको बढानेव ली है । १११ ॥