________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३८६)
अथ भकुरः ( भाकुर)। भंकुरो मधुरः शीतो वृष्यः श्लेष्मकरो गुरुः । विष्टम्भजनकश्चापि रक्तपित्तहरः स्मृतः ॥ १०२ ॥ भाकुर मछली मधुर, शीतल, वृष्य, कफकारक, भारी, विष्टम्भजनक और रक्तपित्तनाशक है ॥ १०॥
अथ मोचिका (मोई) मोचिका वातहद्धल्या बृंहणी मधुरा गुरुः। पित्तहत्कफकृदुच्या वृष्या दीप्तानये हिता ॥१०३॥ मोचिका (मोई ) माली वातनाशक, बलदायक, पुष्टिकारक, मधुर, भारी, पिसनाशक, कलकारक, रुचि उत्पन्न करनेवाली, पृष्य और जिनकी अग्नि दीपन है उनके लिये हितकारी है। १०३ ॥
अथ पाठीनः (बुमारी, वोयाल )। पाठीनः श्लेष्मलो वल्यो निद्रालुः पिशिताशनः । दूषयेद्रुधिरं पित्तकुष्ठरोगं करोति च ॥ १०४ ॥ पाठीन (पठिना) मच्छो ककारक, बलदायक, निद्राजनक, मांसको बोडनेवाली, रुधिरको दूषित करनेवाली और पित्त तथा काढरोगकारक है। १०४॥
अथ शृंगी (सींगी)। शृंगी तु वातशमनी स्निग्धा श्लेष्मप्रकोपनी । रसे तिक्ता कषाया चलनी रुच्या स्मृता बुधैः१०५ श्रृंगी (सींगी) मछली-वातनाशक, स्निग्ध, पित्तको कुपित करनेगली, रसमें कहधी, कसैली, हलकी पौर रुचिकारक है ॥ १०५ ॥
Aho! Shrutgyanam