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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३९३ )
अथ दग्ध-(भूजे हुए) मत्स्याः । दग्धमत्स्यो गुणैः श्लेष्ठः पुष्टिकृद्धलवर्द्धनः ॥३२२॥ भुनी हुई मछली-उत्तम, पुष्टिकारक और बलवर्द्धक है ॥ १२२ ॥
अय कूपजादिमत्स्य गुणाः। कौपमत्स्याः शुक्रमूत्रकुष्ठश्लेष्मविवर्द्धनाः । सरोजा मधुरास्निग्धा बल्या वातविनाशनाः १२३॥ नादेया बृंहणा मत्स्या गुरवोऽनिलनाशनाः। रक्तपित्तकरा वृष्याः स्निग्धोष्णाः स्वल्पवर्चसः॥ चौजाः पित्तकराः स्निग्धा मधुरा लघवो हिमाः। ताडागा गुरवो वृष्या शीतला मलमूत्रदाः। ताडागवत्क्षिप्तजाता बलायुर्मतिहक्कराः ॥ १२५॥ कूप (कुंएकी) मछली-वीर्य, मूत्र, कोढ पौर कफवर्धक है । सरोज (छोटे तलावकी ) मछना-मधुर, स्निग्ध, वनदस्यक और वात विनाशक है। नदीकी मच्छी-पुष्टिकारक, भारी, वातनाशक, रक्तपित्तकारक, मैथुनयक्तिवर्द्धक, गरम और अल्पविष्टा, लानेवाली है । चौध ( हौजकी) मछली-पित्तकारक, स्निग्ध, मधुर, हलकी और शीतल है । सडागकी मछली-भारी, वृष्य, शीतल और मल तथा मूत्रजनक है। झरनेकी मछली-तडागके सदृश बल, आयु, बुद्धि और दृष्टिकारक है ।१२३-१२५॥
अथ ऋतुविशेष मत्स्यविशेषाः । हेमन्ते कूपजा मत्स्याः शिशिरे सारसा हिताः। वसन्ते ते तु नादेया ग्रीष्मे चौअसमुद्भवाः॥१२६॥