________________
३८० ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. 1
चक्षुष्यः शुक्रकफकद्वल्यो वृष्यः कषायकः ॥ ६० ॥ आरण्यकुक्कुटः स्निग्धो बृंहणः श्लेष्मलो गुरुः । वातपित्तक्षयवमिविषमज्वरनाशनः ॥ ६१ ॥
कुक्कुट, कृकवाकु, कालज्ञ, चरणायुध, ताम्रचूड, दक्ष, प्रातर्नादी और -शिखडक ये मुरगे संस्कृत नाम हैं ।
मुरगेका मांस पुष्टिदायक, स्निग्ध, उप्यावीर्थ, वातनाशक, भारी' नेत्रोंको हितकारी, वीर्य तथा कफवर्द्धक, बलदायक, वृष्प और कसैला है । वनमुरगेका मांस - स्निग्ध, पुष्टिकारक, कफकर्ता, भारी और वात पित्त, क्षय वमन तथा विषमज्वरनाशक है ।। ५९-६१ ॥
अथ प्रतुदाः । हारीतः ( हरियल ) |
हारीतो रक्तपीतः स्याद्धरितोऽपि स कथ्यते ॥ ६२ ॥ हारीतोरूक्ष उष्णश्व रक्तपित्तकफापहः । स्वेदस्वरकरः प्रोक्त ईषद्वातकरश्च सः ॥ ६३ ॥
हारीत, रक्तपीत पौर हरित, ये हरियल के संस्कृत नाम हैं ।
हरियलका मांस - रूखा, गरम, रक्तपिन तथा कफनाशक, स्वेदकारक, स्वरको उत्तम करनेवाला और किंचित वातकारक है ॥ ६२ ॥ ६३ ॥ अथ पाण्डुधवलपाण्डू ( पण्डाकृतां ) । पाण्डुस्तु द्विविधो ज्ञेयश्चित्रपक्षः कलध्वनिः । द्वितीयो धवलः प्रोक्तः स कपोतः स्फुटस्वनः ॥६४॥ चित्रपक्षः कफहरो वातघ्नो ग्रहणीप्रणुत् । धवलः पाण्डुरुद्दिष्टो रक्तपित्तहरो हिमः ॥ ६५ ॥
पण्डाता दो प्रकारकी होती है । एक चित्रित पंखोंयुक्त मीठे स्वर. वाली होती है और दूसरी सफेदवर्णयुक्त स्फुटशब्दोंवाकी होती है पहिलीको पाण्डु और दूसरीको धवल और कपोत कहते हैं ॥ ६४ ॥
Aho ! Shrutgyanam