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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.।
अथ वातीकः ( वगेरा बटेरा)। वालीको वर्तिचटको वार्तीकश्चैव स स्मृतः । वालीको मधुरः शीतो रूक्षश्चकफपित्तनुत् ।।५६ वालीक, वर्तिचटक और वार्तीक ये वगरे के संस्कृत नाम हैं। वगेरेका माल-शीतल, कक्ष और कफ तथा पित्तनाशक है ॥ ५६ ॥
__अथ कृष्णतित्तिरिगौरतित्तिरी ( तीतर )। तित्तिरिः कृष्णवर्णः स्याचित्रोऽन्यो गौरतित्तिरिः । तित्तिरिर्बलदो ग्राही हिकादोषत्रयापहः । श्वासकासज्वरहरस्तस्माद्दौरोऽधिको गुणैः ॥ ५७ ॥ जो तीतर काले रंगका हो वह काला तीतर और जो चित्र विचित्र वर्णका हो वह गौर तीतर कहाता है।
तीतरका मांस-बलदायक, ग्राही और हिचकी, त्रिदोष, श्वास, खांसी तथा ज्वरनाशक है। काले तीतरकी अपेक्षा गौर तीतर के मोसमें अधिक
अथ चटकः ( गवरया चिडा)। चटकः कलविकः स्यात्कुलिंगः कालकण्ठकः । कुलिंगः शीतलः स्निग्धः स्वादुः शुक्रकफप्रददः । सन्निपातहरो वेश्मचटकश्चातिशुक्रलः ॥२८॥ वटक, कलविक, कुलिंग और कालकण्ठक, ये चिडेके संस्कृत नाम हैं। चिडेका मांस-शीतल, स्निग्ध, मधुर, वीर्य तथा कफवद्धक पौर सत्रिपात-नाशक है । घरोंमें रहनेवाले चिडेका मांस अत्यन्त वीर्यपद्धक
अथ कुक्कुटः वनकुक्कुटश्च ( मुरगा)। कुक्कुटः कृकवाकुः स्यात्कालज्ञश्चरणायुधः। ताम्रचूडस्तथा दक्षो प्रातर्नादी शिखण्डिकः ॥१९॥ कुक्कुटो बृंहणः स्निग्धो वीर्योष्णानिल हृद्गुरुः । .