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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। ( ३७५) मछली-चिकनी, गरम, भारी, कफ तथा पित्तकारक, वातनाशक, पुष्टिदायक वीर्यवर्द्धक, रुचिकारक, बलबद्धक पौर मद्य (दारू) तथा मैथुनमें भासतोंको तथा प्रदीप्त जठराग्निवानोको हितकारी है ।। ३६-३८॥ अथ जंघालादीनां (जांघवालोंके) नामानि गुणाश्च ।
तत्र जंघालेषु हरिणस्य गुणाः। हरिणः शीतलो बद्धविण्मूत्रो दीपनो लघुः । रसे पाके च मधुरः सुगंधिः सन्निपातहा ॥ ३९ ॥ हिरनका मांस-शीतल, मल सथा मूत्रको बांधनेवाला, अग्निप्रदीपक, एका, रसमें तथा पाकमें मीठा, सुगन्धि पौर सन्निपातनाशक है ॥३९॥
अथ एणहरिणः ( काला हरिण )। एणः कषायो मधुरः पित्तामुक्कफवातहत् । संग्राही रोचनो बल्यो ज्वरप्रशमनः स्मृतः॥४०॥ एण नामक मृगका मांस-कसैला, मीठा, ग्राही, रुचिकारक, बलदायक और पित्त, रक्तविकार, कफ, वात तथा ज्वरनाशक है ॥ ४० ॥
अथ कुरङ्गः। कुरंगो बृंहणो बल्यः शीतलः पित्तद्गुरुः । मधुरो वातग्राही किञ्चित्कफकरः स्मृतः ॥११॥ कुरंग नामक मृगका मांस-पुष्टिकारक, बलवर्द्धक, शीतल, पित्तनाशक, भारी, मधुर, वातनाशक, ग्राही और किश्चित् कफकारक है ॥ ११ ॥
__ अथ रोझा ऋष्यो नीलांडकश्चापि गयो रोझ इत्यपि। गवयो मधुरो बल्यः स्निग्धोष्णः कफपित्तलः १२॥ ऋष्य नीलाण्डक, गवय और रोझ ये रोझके नाम हैं।
रोझका मान-मधुर, बलदायक, स्निग्ध, गरेप और कफ तथा पित्तकारक है॥४२॥
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