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4 ३७६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
.. अथ पृषतः (चित्तालमृग)। पृषतस्तु भवेत्स्वादुहिकः शीतलो लघुः । दीपनो रोचनः श्वासज्वरदोषत्रयास्रजित् ॥ ४३ ॥ पृषत (चित्तल ) नामक मृगका मांस-मधुर, ग्राही, शीतल, हलका, अग्निप्रदीपक, रुचिकारक और श्वास, ज्वर, त्रिदोष तथा रक्तविकारना. शक है ॥४३॥
अथ न्यकुः (बारहसिंगा)। न्यंकुः स्वादुर्लघुर्बल्यो वृष्यो दोषत्रयापहः ॥४४॥ न्यकु नामक मृग (बारहसिंगा) का मांस-मधुर,हनला, बनदायक, वीर्यवर्द्धक और त्रिदोषनाशक है ॥ ४४॥
___ अथ साबरम् । साबरं पललं स्निग्धं शीतलं गुरु च स्मृतम् । रसे पाके च मधुरं कफदं रक्तपित्तहत् ॥ ४५ ॥ राजीवस्तु गुणैज्ञेयः पृषतेन समो जनैः । सावर मृगका मांस-स्निग्ध, शीतल, भारी, रसमें तथा पाकमें मीठा, कफकारक और रक्तपित्तविनाशक है ॥ ४५ ॥ राजीवनामक मृगके मांसके गुण पृषत (चित्तलके) मांसके सदृश ही हैं।
अथ मुंडी। मुंडी तु ज्वरकासास्रक्षयश्वासापहो हिमः ॥१६॥ मुण्डी (सींगरहित ) मृगका मांस--शीतल और ज्वर, खाँसी, रकविकार, पय तथा श्वासनाशक है ॥ ४६॥
___ अथ बिलेशया।
तत्र शश (खरगोश ) स्थ नाममुणाः । लम्बकर्णः शशः शूली लोमकों बिलेशयः । शशः शीतो लघुग्राही रूक्षः स्वादुः सदा हितः४७॥
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