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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
रक्तपित्तहरो वृद्धः क्षयहृद्वलवीर्य्यकृत् । मूले तु मधुरोऽत्यर्थे मध्येऽपि मधुरः स्मृतः ॥ १३ ॥
· कक्षा मन्त्रा-कफकारक, भेद और मेहको बढानेवाला है । प्रधपका गन्ना वातनाशक, मधुर, किंचित तीक्ष्ण तथा पित्तनाशक है । पका हुआ गन्ना - बलवीर्यवर्धक, क्षय और रक्तपित्तको हरनेवाला है। गन्ना-जडमें अत्यन्त मधुर, मध्य में मधुर और ऊपरकी पोरियों में धारयुक्त होता है ।। १२ ।। १३ ।।
अग्रे ग्रंथिषु विज्ञेय इक्षुः पटुरसो जनैः । दन्तनिष्पीडितस्येक्षो रसः पितास्रनाशनः ॥ १४ ॥ शर्करासमवीर्य्यः स्यादविदाही कफप्रदः । मूलाग्रजं तु ग्रन्थयादिपीडनान्मल संकरात् ॥ १५ ॥ किंचित्कालविधृत्या च विकृतिं याति यांत्रिकः । तस्माद्विदाही विष्टंभी गुरुः स्याद्यांत्रिको रसः ॥ १६ ॥
दाँतों से चूमे र गन्ने का रस - पित और रक्तविकारका नाश करता है । शर्कराके समान वीर्यवर्धक, दादोत्पादक और कफकारक होता है ।
यन्त्र ( कुल्हाडी ) में मे निकाला हुआ गन्नेका रस-मूल, अग्रज तथा गांठ यादिके पीडने से मैल के मिल जानेसे और कुछ समय तक रक्खा रहने के कारण खराब हो जाता है । इस ही कारण कुल्हाडीका निकाला हुमा रस विदाहि, विष्टम्भि और भारी होता है ।। १४--१६ ॥
रसः पर्युषितो नेष्टो ह्यम्लो वातापहो गुरुः । कफपित्तकरः शोषी भेदनश्चाति मूत्रलः ॥ १७ ॥ पक्को रसो गुरुः स्निग्धः सतीक्ष्णः कफवातनुत् । गुल्मानाहप्रशमनः किंचित्पित्तकरः स्मृतः ॥ १८ ॥
गोका बासी रस- अपथ्य, खट्टा, वातनाशक, भारी, कफपित्तकारक, शोषी, भेदन और अत्यन्त मूत्रवर्धक है। ईखका पकाया हुआ रस-भारी