________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.
(३४७ )
स्निग्ध, तीक्ष्ण, कफ वातनाशक, गुल्म तथा ग्रानाहको नष्ट करनेवाला और किंचित पित्तकारक है ॥ १७ ॥ १८ ॥
।
इक्षोर्विकारास्तृइदादमूर्छापित्तास्रनाशनाः गुरवो मधुरा बल्याः स्निग्धा वातहराः सराः ॥ १९ ॥ वृष्या मोहहराः शीता बृंहणा विषहारिणः ।
ईख के रस के विकार अर्थात गुड आदि पदार्थ-भारी, मधुर, बलकारक, स्निग्ध, वातनाशक, दस्तावर, वीर्यवर्धक, मोहनाशक, शीतल, बृंहण तथा विष, प्यास, दाह, मूर्च्छा, पिस और रक्तविकारका नाश करते हैं ॥ १९ ॥
फाणितम् ।
इक्षो रसस्तु यः पक्कः किंचिद्गाढो बहुद्रवः ॥ २० ॥ स एवेक्षुविकारेषु ख्यातः फाणितसंज्ञया । फाणितं गुर्वभिष्यंदि वृंहणं कफशुक्रकृत् ॥ २१ ॥
नेका जो रस- कुछ गाढा, बहुत बहनेवाला और पका हुआ होता है इक्षुविकारोंमें उसको फाणित नामले पुकारा जाता है । फाणित-भारी, अभिष्यन्दि, बृंहण, करु और शुक्रको बढानेवाला, वात, पित्त और श्रमको हरनेवाला तथा मूत्र और वस्तिको शुद्ध करनेवाला है ॥ २० ॥ २१ ॥
·
वातपित्तश्रमान्हंति मूत्रवस्ति विशोधनम् । इक्षो रसो यः संपक्को घनः किंचिद्रवान्वितः ॥२२॥ मंदं यत्स्यंदते तस्मान्मत्स्यंडीति निगद्यते । मत्स्यंडी भेदनी बल्या लध्वीपित्तानिलापहा ॥२३॥ मधुरा बृंहणी वृष्या रक्तदोषापहा स्मृता ।
इक्षुका जो रस- अच्छी तरह पकाया हुआ, गाढा और किंचित बहनेवाला होता है उसे मत्स्यण्डी (मीजा) कइसे में क्योंकि यह मन्द ९