________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३४६) दीर्घपोरः सुकठिनः सक्षारो वंशकः स्मृतः । शतपोरो भवेत्किचित्कोशकारगुणान्वितः ॥ ७॥ विशेषात्किचिदुष्णश्च सक्षारः पवनापहः । तापसेक्षुभवेन्मृद्वी मधुरा श्लेष्मकारिणी ।। ८॥ पौण्डक और भीरुक-शीतल, बृंहण, बलकारक वातपिननाशक और रस पाकमें मधुर होते हैं। कोशकार भारी, शीतल, रक्त पेस और भयको नष्ट करता है। कान्तार-भारी, वीर्यवर्धक, कफकारक, बृंहण पौर दस्तावर होता है । वंशक-बडी पोरियौवाला, कठोर और क्षारयुक्त होता है। शतपोर-कोशकारके कुछ गुणोंवाला विशेष करके किंचित उष्ण, क्षारयुक्त भौर वासनाशक होता है । तापसेक्षु-मृदु, मधुर, कक. कारक होता है॥५-८॥
काष्ठेक्षुः। एवंगुणैस्तु काष्ठेक्षुः स तु वातप्रकोपनः ॥९॥ सूचीपत्रो नीलपोरो नैपालो दीर्घपत्रकः । वातलाः कफपित्तघ्नाः सकषाया विदाहिनः ॥१०॥ मनोगुप्ता वातहरी तृष्णामयविनाशिनी। सुशीता मधुरातीव रक्तपित्तप्रणाशिनी ॥ ११ ॥ यही गुण काष्ठे में भी हैं। किंतु वह विशेष करके वातको कुपित करनेवाला है।
सूचीपत्रक, नेपाल, दीर्घपत्र पौर नीलपोरं यह-वातकारक, कषाय, विदाही तथा कफपित्तनाशक है।
मनोगुप्ता-वातनाशक, यासतम्बन्धिरोग, रक्तपित्तको नष्ट करनेवाली तथा शीतल और मधुर है ।। ९-११ ॥
बाल इक्षुः कथं कुर्यान्मेदोमेहकरश्च सः युवा तु वातहत्स्वादुरीपतीक्ष्णश्च पित्तनुत् ॥ १२ ॥