________________
(३४४)
भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
इक्षुवर्गः १९.
इक्षुर्दीच्छदः प्रोक्तस्तथा भूमिरसोऽपि च । गुडमूलोऽसिपत्रश्च तथामधुतृणः स्मृतः ॥ १ ॥ इनो रक्तपित्तना बल्या वृष्याः कफप्रदाः। स्वादुपाकरसाः स्निग्धा गुरको मृत्रला हिमाः ॥२॥ इक्षु. दीपच्छर, भूमिरस, गुडमल, असिग्त्र और मधुतण यह इक्षु (ईख ) के नाम हैं। इनको हिन्दी में गत्रा, फारसीमें नेशकर और अंग्रेजीमें Sugarcaue कहते हैं।
इक्षु-पक्त पिननाशक, बल तथा वीर्य को बढानेवाले, कफकारक, रत पौर पाकमें मधुर, स्निग्ध, भारी, मुबल पौर शीतन हैं ॥ १ ॥२॥ पौंड्रको भीरुकश्चापि वंशकः शतपोरकः । कांतारस्तापसेक्षुश्च काष्ठेक्षुः सूचित्रकः ॥३॥ नेगालोदीपत्र व नीलपारोऽप्यकोशकृत् । इत्येता जातयस्तेषां कथयामि गुगानपि ॥ ४॥ पोण्डक, भीरुक वंशव, शतपारक, कान्तार, तापसेशु, काष्ठा, सुधि पत्रक, नैपाल, दीघपत्र, नीलपोर और कोशकारक यह इक्षुकी जाति है। अब इसके गुणाका कहते हैं ॥ ३ ॥ ४ ॥
वातपित्तप्रशमनो मधुरो रसपाकयोः । सुशीसो घंह गो बल्यः पौंड्रको भीरकस्तथा ॥५॥ कोशकारो गुरुः शीतो रक्तपितक्षयापहः।। कांतारेक्षुर्गुरुर्वृष्यः श्लेष्मलो बृहणः सरः ॥६॥
DAShCHU