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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
मधुओं में श्रेष्ठ, नेत्ररोगोंको हरनेवाला, हलका तथा कामला, अर्श, क्षत श्वास, कास, क्षय इनका नाश करनेवाला है ॥ ७ ॥ ८ ॥
किंचित्सूक्ष्मैः प्रसिद्धेभ्यः षट्पदेभ्योऽलिभिश्चितम् । निर्मलं स्फटिकाभं यत्तन्मधु भ्रामरं स्मृतम् ॥ ९ ॥ भ्रामरं रक्तपित्तघ्नं मूत्रजाडयकरं गुरु । स्वादुपाकमभिष्यंदि विशेषात्पिच्छिलं हिमम् १० ॥ प्रसिद्ध भौंरोसे कुछ छोटे भौरों द्वारा बनाया हुआ, स्फटिक मणिके समान निर्मल जो मधु हो उसको भ्रामर कहते हैं ।
भ्रामर - रक्तपित्तनाशक, मूत्र तथा जडताको करनेवाला, भारी, पाक में मधुर, अभिष्यन्दि, विशेष करके पिच्छिल और शीतल है ॥ ९ ॥ १०४
मक्षिकाः कपिलाः सूक्ष्माः क्षुद्राख्यास्तत्कृतं मधु । मुनिभिः क्षौद्रमित्युक्तं तद्वर्णात्किपिलं भवेत् ॥ ११ ॥ गुणैमक्षिकवत ौद्रं विशेषान् मेहनाशम् ॥ १२ ॥
कपिल वर्णकी छोटी मक्खियां क्षुद्रा कहलाती हैं। इन मक्खियोंका बनाया हुआ कपिल वर्णवाला मधु क्षौद्र कहलाता है । क्षौद्रके गुण माक्षिक के समान ही हैं किन्तु यह विशेषकरके प्रमेहको नष्ट करता है ॥ ११ ॥ १५ ॥
कृष्णा या मशकोपमा लघुतराः प्रायो महापिंडका बध्नानास्तरुकोटरांतरगताः पुष्पास्वं कुर्वते । तास्तज्ज्ञैरिह पुत्तिका निगदितास्ताभिः कृतं सापषा तुल्यं यन्मधु तद्वनेचरजनैः संकीर्तितपौत्तिकम् ॥ १३ ॥ पौत्तिकं मधु रूक्षोष्णं पित्तदाहास्रवातकृत् । विदाहि मेहहृच्छस्तं ग्रंथयादिशतशोथिषु ॥
१४ ॥
काली मच्छर के सहा, बहुत छोटी, बडे पिण्ड बनानेवाली, खोह मौर