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( ३३६ ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
सरसों के तेल के समान ही राई के तेल के गुण हैं। किंतु राईका तेल मूत्र• . कृच्छको करनेवाला है ॥ ९-११॥
तुवरीतैलगुणाः । तीक्ष्णोष्णं तुवरीतैलं लघु ग्राहि कफास्त्रजित् । वह्निकृद्विषहत्कण्डुकुष्ठकोठक्रिमिप्रणुत् । मेदोदोषापहं चापि व्रणशोथहरं परम् ॥ १२ ॥ तुवरी (तारामीरा) का तेल-अग्निवर्द्धक, तीक्ष्ण,उष्ण,ग्राही,कम और रक्तविकारको जीतने वाना, विषविकारको हरनेवाला तया कण्डू, कुष्ठ, कोठ, कृमि, मेदरोग और व्रण शोथको हरनेवाला है ॥ १२ ॥
अतसीतेलगुणाः। अतसीतैलमानेयं स्निग्धोष्णं कफपित्तकृत् ॥ १३ ॥ कटुपाकमचक्षुष्यं बल्यं वातहरं गुरु । मलकृद्रसतः स्वादु ग्राहि त्वग्दोषहृद्घनम् ॥१४॥ वस्तौ पाने तथाभ्यंगे नस्ये कर्णास्यपूरणे । अनुपानविधौ चापि प्रयोज्यं वातशांतये ॥ १५॥ अलसीका तेल-अग्निवर्द्धक, स्निग्ध, उष्ण, कफ, पित्तकारक,कटुपा की? नेत्रोंको अहितकारी,बलकारक, वातनाशक,भारी,मनकारक, रसमें स्वादु ग्राही, सचाके दोहरनेवाला,गाढा,नथा बस्तिकर्म, पीने में, अभ्यंगमें नस्य कर्ममें,कर्णपूरण में, मुखपूर अनुगन विधिले, वायुकी शांतिके. लिये प्रयोग किया जाता है ॥ १३-१५॥
. कुसुम्मतैलगुणाः। कुसुम्भतैलमम्लं स्यादुष्णं गुरु विदाहि च । चक्षुामहितं वृष्यं रक्तपित्तकफप्रदम् ॥ १६॥ कुसुंभे के बीजों का तेल-अम्ल, उष्ण,भारी,विदाहो,नेत्रों को हानिकारक पृष्य, रक्त पित्त और कफको बढानेवाला होता है ॥ १६ ॥