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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । ( ३३७ ) खसतैलगुणाः ।
तैलं तु खमबीजानां बल्यं वृष्यं गुरु स्मृतम् । वातहर कफहच्छीतं स्वादुपाकरसं च तत् ॥ १७ ॥ खसखसका तेल बलकारक, वृष्य, भारी, वातनाशक, कफनाशक, शीत, रस और पाक में मधुर होता है ॥ १७ ॥
एरण्डतैलगुणाः ।
एरंडतेलं तीक्ष्णोष्णं दीपनं पिच्छिलं गुरु । वृष्यं त्वच्यं वयःस्थापि मेइकांतिबलप्रदम् ॥ १८ ॥ कषायानुरसं सूक्ष्मं योनिशुक्रविशोधनम् । विखं स्वादुरसे पाके सति कटुकं सरम् ॥ १९ ॥ विषमज्वरहृद्रोगपृष्ठगुह्यादिशुलनुत् ।
इंति वातोद्गनाहगुल्माष्ठीलाकटिहान् ॥ २० ॥ वातशोणित विडूबंधब्रमशोथाम विद्रधीन् । आमवात गजेंद्रस्य शरीरवनचारिणः । एक एव निहन्ताय मेरंड स्नेहकेसरी ॥ २१ ॥
एरण्डका तेल- तीक्ष्ण, उष्ण, दीपन, पिच्छिल, भारी, हृष्य, त्वचाके लिये हितकारी, वयस्थापनकर्ता, मेद, कांति और मळके बहानेवाला, कषायानुरस, सूक्ष्म, योनि और वीर्यको शुद्ध करनेवाला, चित्र, रस और पाक में मधुर, किंचित तिक्त, कटु और दस्तावर है । एवं विषमज्वर, हृद्रोग, पृष्टशूल, योनिशूल, वातोदर, अफारा, गुल्म, अष्ठीला, कमरका शूल, वातरक्त, मलका विबंध, ब्रध्म, शोथ, आमविकार और विद्रधिको दूर करता है। ग्रामवातरूपी हाथी जो शरीररूपी बनमें मस्त होकर फिरता है उसको एक परण्ड तेलरुपी शेर मार डालता है ॥ १८-२१ ॥
Aho! Shrutgyanam
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