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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । (२८९) नासिका रोग, कण्ठके रोग और नेत्ररोगोंको दूर करती है। पक जानेपर बडी मुली-क्ष, उष्ण, भारी और त्रिदोषकारक हो जाती है। घृत तैल में सिद्ध किया हुवा कच्ची मुलीका शाक त्रिदोषनाशक होता है ॥ ९९-१०२॥
गाजरम् । गाजरं गर्जरी प्रोक्ता तथा नारंगवर्णकम् ॥ १०३ ॥ गाजरं मधुरं तीक्ष्णं तितोष्णं दीपनं लघु । संग्राहि रक्तपित्ताभॊग्रहणींकफवातजित् ॥ १०४ ॥ गाजर, गर्जरी और नारंगवर्णक यह गाजरके नाम हैं। गाजर-मधुर, तीक्ष्ण, तिक्त, उष्ण, दीपन, हल्की, संग्राही एवं रक्तपित्त, अर्श, ग्रहणी, कफ, और वायुको जीतती है। अंग्रेजीमें इसे Carrat और फारसीमें जर्दक कहते हैं ॥ १०३ ॥ १०४ ॥
कदली। शीतलः कदलीकंदो बल्यः केश्योऽम्लपित्तजित् । वतिकृदाहहारी च मधुरो रुचिकारकः ॥ १०५ ॥ केलेका कन्द-वनकारक, केशवर्द्धक, अम्लपित्तनाशक, जठराग्निको चैतन्य करनेवाला, दाहनाशक, मधुर, मौर रुचिकारक होता है ॥१०५॥
मानकः। मानका स्यान्महापत्रः कथ्यते तद्गुणा अथ । मानकः शोथहच्छीतः पित्तरक्तहरो लघुः ।। १०६॥ मानकन्दको महापत्र भी कहते हैं। मानकन्द शोथनाशक, शीतल, रक्तपित्तनाशक और हल्का होता है ॥ १०६ ॥
. वाराही। वाराही पित्तला बल्या कटुतिक्ता रसायना ।
आयुःशुक्रानिकृन्मेहकफकुष्ठानिलापहा ॥ १०७ ॥ वाराहीकन्द-पत्तकारक, बलवर्धक कटु, तिक्त, रसायन, आयु. बंधक, वीर्यवर्द्धक, अग्निकारक पवं प्रमेह, कुष्ठ और वायुकोहरनेवाला
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