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( १९०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
इस्तिकीं। गजकर्णी तु तितोष्णा तथा वातकफी जयेत् । . शीतज्वरहरी स्वादुः पाके तस्यास्तु कंदकः॥१०८॥ पांडुशोथकृमिप्लीहगुल्मानाहोदरापहा । ग्रहण्यर्चाविकारघ्नो घनसुरणकंदवत् ॥ १०९॥ गजकर्णी हस्तिकर्णकन्दको करते हैं । हस्तिकर्ण-तिक्त, उष्ण, वातकफनाशक, शीतज्वरनाशक, पाकमें मधुर तथा पाण्डु, शोध, कृमि, प्लीहा, गुल्म, अफारा, उमररोग, ग्रहणी और बवासीरको दूर करता है। इसका कन्द वनसूरण कंदके समान होता है। शिमलेके पहाडमें इसको गणौरा कहते हैं ॥ १०८ ॥ १०९ ॥
कंबुकम् । केंचुकं कटुकं पाके तिक्तं ग्राहि हिमं लघु । दीपनं पाचनं हृद्यं कफपित्तज्वरापहम् ॥ ११०॥
कुष्ठकासप्रमेहास्रनाशनं वातलं कटु । केंबुक, केमुक यह केउवा कन्दके नाम हैं । केउवा कन्द कटुपाकी तिक्त, ग्राही, शीतल, हल्का, दीपन, पाचन, हृद्य, वातकारक, कटु, एवं कफ, पित्त, ज्वर, कुष्ठ, कास, प्रमेह और रक्तविकार को दूर करता है।। ११० ॥
कसेरुकम् । कसेरु द्विविधं तत्तु महद्राजकसेरुकम् ॥ १११ ॥ मुस्ताकृति लघुः स्याद्या तच्चिचोडमिति स्मृतम् । कसेरुकद्धय शीतं मधुरं तुवरं गुरु ॥ ११२॥ पित्तशोणितदाहघ्नं नयनामयनाशनम् ।
ग्राहि शुक्रानिलश्लेष्मरुचिस्तन्धकरं स्मृतम्॥११३॥ कसेरू दो प्रकारके होते हैं एक बडे जिनको कसेरू कहते हैं। दूसरे नागरमोथेके समान छोटे होते हैं उनको चिचोड कहते हैं। दोनों कसेरू