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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२६९ ) प्रायः सब शाक विष्टंभी, भारी, रूक्ष, बहुत मलके करनेवाले, मनमूबको पैदा करनेवाले होते हैं । शाक प्रायः शरीर और अस्थिको भेदन करनेवाले, नेत्रोंकी ज्योति कम करनेवाले, वर्ण, रक्त और वीर्यको हरनेवाले, बुद्धिका क्षय करने वाले, बालों को सफेद बनानेवाले, स्मरणशतिको बिगाड़नेवाले और गतिको हनन करनेवाले होते हैं। प्रायः सब पत्रशाकों में देहनाशक रोग होते हैं और खटाई में भी यही दोष है। इसलिये बुद्धिमानोंको शाक और खटाई कम खाना चाहिये । यह उपरोक्त दोष सामान्यरूपसे कह गये हैं परन्तु पत्र फल और कंदआदि शाकोंमें विशेष गुण भी पाये जाते हैं। इतने दोष प्रायः सब शाकोंमें नहीं होते, यह सामान्य वाक्य विशेष गुणों के बाधक नहीं हैं ॥ १-४॥ एतानि शाकनिंदकवचनानि सामान्यानि ।
पत्रशाकं वास्तुकद्वयम् । वास्तुकं वास्तुकं च स्यात्क्षारपत्रं च शाकराट् । तदेव तु बृहत्पत्रं रक्तं स्यागौडवास्तुकम् ॥५॥ प्रायशो यवमध्ये स्याद्यवशाकमतः स्मृतम् । वास्तूकद्वितयं स्वादु क्षारं पाके कटूदितम् ॥६॥ दीपनं पाचनं रुच्य लघु शुक्रबलप्रदम् । सरं प्लीहाऽस्रपित्ताशकृमिदोषत्रयापहम् ॥ ७॥
वास्तूक, वास्तुक, क्षारपत्र और शाकराट् यह बथुएके नाम हैं । लान रंगका बड़े पत्तोंवाला बाथू गौड़वास्तुक कहा जाता है। उसे अंग्रेजीमें white Goose foot अथवा purple goose foot कहते हैं।
बाथू-प्रायः यवोंके खेतके मध्यमें होता है। इसलिये इसको यषशाक भी कहते हैं। दोनों बाथू-स्वादु, खारे, पाकमें कटु, दीपन, पाचन, रुचिकारक, हल्के, वीर्य और बलको देनेवाले, सारक तथा तिल्ली, रक्तपित्त, पर्श, कृमि और त्रिदोषको हरनेवाले ॥५-७॥