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(२६८) , भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । एक वर्ष के बाद सब धान अपने भारीपनको त्याग देते हैं, परन्तु अपने वीर्यको नहीं छोड़ते । दूसरे वर्षके अनंतर इनके वियादि भी कम होने लग जाते हैं । इनमें बल पुष्टि के लिये यव, गेहूं, तिल और माषादि नवीन ही हितकारक होते हैं। पुराने होने पर क्ष और विरस होनेसे वैसे गुणकारी नहीं रहते ॥ ९१-९३ ॥
इति श्रीवैद्यरत्नपंडितरामप्रसादात्मज-विद्यालङ्कार-शिवशर्मवैद्यशास्त्रिकृत-शिवप्रकाशिकाभाषायां हरीतक्यादि
निघण्टौ धान्यवर्गः समाप्तः ॥ ८॥
शाकवर्ग; ९.
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पत्रं पुष्पं फलं नालं कंदं संस्वेदजं तथा। शाकं षड्विधमुद्दिष्टं गुरु विद्यायथोत्तरम् ॥१॥ प्रायः शाकानि सर्वाणि विष्टंभीनि गुरूणिच । लक्षाणि बहुवासि सृष्टविण्मारुतानि च ॥२॥ शाकं भिनत्ति वपुरस्थि निहंति नेत्रं, वर्ण विनाशयति रक्तमथापि शुक्रम् । प्रज्ञाक्षयं च कुरुते पलितं च नून, हंति स्मृतिं गतिमिति प्रादंति तज्ज्ञाः ॥ ३ ॥ शाकेषु सर्वषु वसंति रोगास्ते हेतवो देहविनाशनाय । तस्माद्बुधःशाकविवर्जनं तु कुत्तियाम्लेषुसएत्रदोषः।
पत्र, फूल, फन, नाल, कंद पौर संस्वेदज इन भेदोंसे शाक छः प्रका. रके कहे हैं। इनमें पहलेसे दूसरा उत्तरोत्तर क्रमले भारी माना जाता है।