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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१५७ ) किंकीरात-शीतल, तिक्त, कषायरलवाला और कफ, पित्त, प्यास, रक्तविकार, व्रज धौर कुष्ठ इनको जीतनेवाला है। ४२॥ ४३ ॥
कर्णिकारः। कर्णिकारः कटुस्तितस्तुवरः शोधनो लघुः॥४४॥ रंजनः सुखदः शोथश्लेष्मास्रवणकुष्ठजित् । कर्णिकार (अमलतास)-कटु, तिक्त, कसैला, शोधन, हलका, रंग देनेवाला, सुखदायक और शोथ, कफ, रक्तविकार, व्रण तथा कुष्ठ इनको जीतनेवाला है॥४४॥
अशोकः। अशोको हेमपुष्पश्च वंजुलस्ताम्रपल्लवः ॥१५॥ कंकेलिः पिंडपुष्पश्च गंवपुष्पो नटस्तथा । अशोकः शीतलस्तितो ग्राही वर्ण्यः कषायका४६॥ दोषापचीतृषादाहकृमिशोथविषास्रजित । अशोक, हेमपुष्प, वंजुल, ताम्रपल्लव, कंकेली, पिण्डपुष्प, गन्धपुष्प और नट यह अशोकके नाम हैं। अशोक-शीतल, तिक्त, ग्राही, वर्णको उनम करनेवाना, कसैला और त्रिदोष, अपची, तृषा, दाह, कृमि, शाथ विष तथा रक्तविकारका नाश करने वाला है। ४५॥ १६ ॥
बाणपुष्पः। अम्लातोऽम्लादनः प्रोक्तस्तथाम्लातक इत्यपि ४७॥ कुरंट को बाणपुष्पः सरावोक्ता महासहा । अम्लादनः कषायोष्णः स्निग्धः स्वादुश्च तिक्तका पालात, पम्लादन, अम्लातक, कुरंटक, बाणपुष, सरायोक्ता और महासहा यह बाणपुष्पके नाम हैं। बाणपुष्प-कसैला, गरम, निधि, स्वादु और तिक्त है ॥४७॥ १८॥ .