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(१५६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
माधवी। माधवी स्यात्तु वासंती ड्रिको मंडकोऽपि च ।
अतिमुकश्चाविमुक्तःकामुको भ्रमरोत्सवः ॥३९॥ माधवी मधुरा शीता लघ्वी दोषत्रयापहा । माधवी, वासन्ती, पुंडिक, मण्डक, अतिमुक्त, अविसक्त, कामुक और भ्रमरोग्सव यह माधवीके नाम हैं । इसे हिन्दीमें.माधवी और वसन्ती तथा अंग्रेजीमें Clustered Hiptega कहते हैं। माधवी-मधुर, शीतल, हलकी और त्रिदोषनाशक है ।। ३९ ॥
केतकी । स्वर्ण केतकी। केतकः सूचिकापुष्पो जंबूकः क्रकचच्छदः ॥४०॥ सुवर्णकेतकी त्वन्या लघुपुष्पा सुगंधिनी । केतकः कटुकास्वादुर्लघुस्तिक्तः कफापहः ॥ ११ ॥ उष्णस्तिक्तरसो ज्ञेयश्चक्षुष्यो हेमकेतकी । केतक, सूचिकापुष्प, जम्बूक और क्रकचच्छद यह केतकीके नाम हैं सुवर्णरे तकी, लघुपुष्पा और सुगंधिनी यह सुवर्णकेतकी के नाम हैं। इसको हिन्दीमें केवडा तथा पीना केवडा और फारसीमै करज कहते हैं।
केवडा-कटु, स्वादिष्ठ, हलका,तिक्त पौर कफको हरनेवाला है। पीला बेवडा-गरम, तिक्तरसवाला तथा नेत्रोंके लिये हितकारी है ॥४०॥४१॥
किकिरातः । किंकिरातो हेमगौरः पीतकः पीतभद्रकः ॥४२॥ किंकिरातो हिमस्तिक्तः कषायश्च हरेदसौ। कफपित्तपिपासास्रदाहशोषवमिक्रिमीन् ॥ १३ ॥ किंकिगत, हेमगौर, पीतक और पीतभद्रक यह पीतके नाम हैं। इसको हिन्दीमें किंकिरात और फारसी में मधिलान कहते हैं।