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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१५५ ) कदंबो मधुरः शीतः कषायो लवणो गुरुः ॥ ३४॥ सरोऽवष्टंभकृक्षः कफस्तन्यानिलप्रदः । कदव, प्रिय, नीप, वृत्तपुष्प तथा हलिप्रिय यह कदंबके नाम हैं। कदंग-मधुर, शीतल, कसैला, लवणरसवाला, भारी, दस्तावर, पेटमें हवा भरनेवाला रूक्ष और कफ, दूध तथा वायुको बढ़ानेवाला है ॥३४॥
कुब्जकः। कुब्जको भद्रतरुणी बृहत्पुष्पोऽतिकेसरः॥ ३५ ॥ महासहा कंटकाढया नीलाऽलिकुलसंकुला। कुब्जकः सुरभिः स्वादुः काषायानुरसासरः॥३६॥ त्रिदोषशमनो वृष्यः शीतहर्ता च स स्मृतः। कुब्जक, भद्रतरुणी, बृहत्पुष्प, प्रतिवेसर, महासहा, कंटकाढय, नीला पौर अलिकुद्धसैकुला यह कुन्जकके नाम है। इसे हिन्दीमें कूजा कहते हैं।
कुन्जक-सुगन्धयुक्त, मधुर कसैला, दस्तावर, त्रिदोषनाशक, वीर्यवर्धक तथा शीतको हरनेवाला है ॥ ३५ ॥ ३६ ॥
मल्लिका। मल्लिका मदयंती च शीतभीरुश्च भूपदी ॥ ३७॥ मल्लिकोष्णा लघुवृष्या तिक्ता च कटुका हरेत् । वातपित्तास्यहरव्याधिकुष्ठारुचिविषत्रणान् ॥ ३८ ॥ मल्लिका, मदयन्ती, शीतभीरु और भूपदी यह मल्लिकाके नाम हैं। इसको हिन्दीमें मोतिया कहते हैं।
मल्लिका-गरम, हलकी, वीर्यवर्धक, तिक्त, कटु पौर वात, पित्त, मुख तथा पाखोंके रोग, कुष्ठ, अरुचि, विष पौर व्रणोंका नाश करनेवाली है॥३७॥ ३८॥
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