________________
( १९४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । चंपकः कटुकस्तिक्तः कषायो मधुरो हिमः । विषक्रिमिहरः कृच्छूकफवातास्रपित्तजित् ॥३०॥ चांपेय, चम्पक और हेमपुष्प यह चम्पकके नाम हैं। इसे. हिन्दी में चम्पा कहते हैं। इसकी चम्पोतियोंको गन्धफली कहा जाता है। चम्पक-कटु, तिक्त, कसैमा, मधुर. शीतल, विष और कृमियोंको हरनेवाला तथा कृच्छ, कफ, वात और रक्तपित्तको नष्ट करनेवाला है॥ २९ ॥ ३०॥
नकुलः। बकुलो मधुगंधश्च सिंहकेसरकस्तथा । बकुलस्तुवरोऽनुष्णः कटुपाकरसो गुरुः ॥ ३१ ॥ कफपित्तविषश्वित्रकृमिदंतगदापहा । बकुल, मधुगन्ध और सिंहकेसर ये बकुलके नाम हैं। इसे हिन्दीमें मौलसिरी तथा अंग्रेजीमें Surinam medlar कहते हैं।
बकुल-कसैला, अनुष्ण, पाक और रसमें कटु, भारी और कफा पित्त, विष, श्वित्र, कृमि तथा दांतोंकी व्याधियोंको दूर करनेवाला
वकः । शिवमल्ली पाशुपत एकाष्ठीलो बको वसुः ॥ ३२॥ बकोऽनुष्णः कटुस्तितः कफपित्तविषापहा । योनिदोषतृषादाइकुष्ठशोथास्त्रनाशनः ॥ ३३ ॥ शिवमल्ली, पाशुपत, एकाष्ठील, बक तथा वसु यह बड़ी मौलसिरीके नाम हैं।
बडी मौलसिरी-अनुष्य, कटु, तिक्त और कफ, पित्त, विष, योनिदोष, प्यास, दाह, कुष्ठ, शोथ तथा रक्तविकारको नष्ट करती है॥ ३२ ॥ ३३॥
कदंवः।
. कदंबः प्रियको नीपो वृत्तपुष्पो इलिप्रियः ।
Pvana