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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१५३ ) जातीयुगं तिक्तमुष्ण तुवरं लघु दोषजित् । शिरोशिमुखदंतार्ति विषकुष्ठत्रणास्रजित् ॥ २६॥ जाति, जाती, सुमना, मालती, राजपुत्रिका, चेतकी और हृद्यगन्धा, यह चेतकीरे नाम हैं। पीली चेतकीको स्वर्णजाति का कहते हैं। इसको हिन्दीमें चमेली और चम्बेली तथा अंग्रेजीमें Spanish Jasmine कहते हैं।
दोनों प्रकारकी चमेली-तिक्त, गरम, कसैली, हज की, त्रिदोषनाशक और शिरोरोग, अक्षिरोग, मु वरोग, दन्तौकी पीडा, कुष्ठ, व्रम और रकविकारको हरनेवाली है ।। २५ ॥ २६ ॥
যুথিঙ্কা। यूथिका गणकांबष्ठा सा पीता हेमपुष्पिका । यूथियुगं हिमं तितं कटुपाकरसं लघु ॥ २७॥ मधुरं तुवरं हृद्यं पित्तघ्नं कफवातलम् । व्रणास्रमुखदंताशिशिरोरोगविषापहम् ॥ २८ ॥ यूथिका, गणका और अम्बष्ठा यह जूहीके नाम हैं । हेमपुष्पिका पीली जूहीका नाम है।
दोनों प्रकारकी जूही-शीतल तिक्त, पाक और रस में कटु, हलकी, मधुर, कसैली. हदयको प्रिय, पित्तनाशक, कफ और वातको बढानेवाली तथा व्रण, रक्तविकार, मुखरोग, दन्तरोग, अक्षिरोग, शिरोरोग और विषका नाश करनेवाली है ॥ २७ ॥ २८ ॥
चांपेयः।
चांपेयश्चपकः प्रोक्तो हेमपुष्पश्च स स्मृतः। एतस्य कलिका गंधफलीति कथिता बुधैः ॥२९॥