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( १५८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
सैरेयकः। सैरेयकः श्वेतपुष्पः सैरेया कटिसारिका । सहाचरः सहचरः स च भिंद्यपि कथ्यते ॥ १९ ॥ कुरंटकोऽत्र पीतः स्याद्रक्तः कुरबकः स्मृतः। नीलो बाणो द्वयोरुक्तो दासी चार्तगलश्च सः॥५०॥ सैरेयः कुष्ठवातास्त्रकफकंडूविषापहः । तिक्तोष्णो मधुरो दंत्यः मुस्निग्धः केशरंजनः॥५॥ सरेयक, श्वेतपुष्प, सरेया, कटिसारिका, सहाचर, माचर और 'भिन्दी या श्वेतपुष्पवाली कटसरैयाके नाम हैं । पीले पुष्पवाली कटसरैयाको कुरंटक, नालपुष्पवानीको कुरबक तथा नीले फूलवामीको बाण, दासी पौर आर्तगन कहते हैं। वाण शब्द स्वीनिंग और पुंलिंग दोनों में होता है।
कटसरैया-तिक्त, उष्ण, मधुर, दांतोंको हितकारी, स्निग्ध, केशको रंजन करनेवाला और कुष्ठ, वात, रक्तविकार, कफ, कण्हु तथा विषको दूर करनेवाला है ॥ १९-५१ ॥
कुंदम् । कुंदं तु कथितं माध्यं सदापुष्पं चतत्स्मृतम् । कुंदं शीतं लघु श्लेष्मशिरोरुग्विषपित्तहत् ॥५२॥ कुंद, माध्य और सदापुग्प यह कुंदके नाम हैं।
कुन्द-शीतल, लघु और कफ, शिरकी पीडा, विष तथा पित्तको नष्ट करनेवाला है ॥५२॥
मुचुकुंदः। मुचुकुंदः क्षत्रवृक्षश्चित्रका प्रतिविष्णुकः । मुचुकुंदः शिरस्पीडापित्तास्त्र विषनाशनः ॥५३॥ शुचकुन्द, पत्रवृष, चित्रक और प्रतिविष्णुक यह मुचुकुन्दके