________________
भूमिका ।
समझे कि उस समय पिताजी हमको क्यों मायुर्वेदका नाम तक नहीं लेने देते थे । आयुवद शास्त्रके ज्ञानके लिये जितने शास्त्रोंका पण्डित प्रथम ही हो जाना चाहिये, अभी हममें वह योग्यता नहीं आयी थी।
तो भी पढ़ते • सुश्रुतसंहिता और चरकसंहिता पर अंग्रेजी टोका करनेकी धुन सवार हुई । हमने अपना भाव पूज्य पिताजीसे प्रगट किया । पित जी ने आज्ञा दी अभी जल्दी मत करो। पहले छोटे ग्रंथोंपर भाषानुवाद करो फिर संस्कृत अंग्रेजी टिप्पणिये करो । सब उपकरण एकत्रित कर चरककी अंग्रेजी टीका करना।
जो ग्रंथ भानुशाद के लिए मुझे दिये गये उनमें वह हरीतकवादिनिघण्टु" भी है । मैंने थम इसको लेकर इसका भाषानुवाद किया। इसमें कही। अंग्रेजी और फारसी शब्द भी लाथ दे दिये गये हैं। सज्ञ सर्वाधार अन्तर्यामीकी पूजाके लिये यह अनुड मेरा प्रथम आयुर्वेदिक पुए है । इसको भगवानकी भेंटके लिये अनभिज्ञावस्थामें लाया हं, भगवान् मुझ पर कृपावर कि मैं और पुष्प जानकार पुजारीके समान भगवानको भेंट कर सकू। जिसे मैं आयुर्वेद द्वारा सच्चा पुजारी कहलानेका अधिकारी बन जाऊं । जिन पूज्य पिताजी द्वारा इस अायुर्वेद ममद्रका दर्शन हुमा है, उनकी आज्ञानुसार यह निघण्टु "श्रीवें कटेश्वर" स्टीम् प्रेसमें छपने को भेज दूपरे फूलकी खोज में लगता हूं।
भगवान् अपने भक्तोंको अनभिज्ञताके दोषोंपर सदा क्षमा करते आये हैं। विराट्र भगवान् इस फून चढानेकी अनभिज्ञता पर भी अधपक्षमा बर विज्ञ बननेका आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
यदि मानुषी बुद्धि के कारण या छापेखानेकी कृपासे कोई भ्रष्टतानाटक खिळ जाये तो बुद्धिमान् जन क्षमाकर सूचित करने की कृपा करेंगे जिससे दूसरी बार छपने में सुधार दिया जाये।
-शिशर्मा,
पटियाला।
Aho ! Shrutgyanam