________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१२७) श्लीपदारुच्यपस्मारप्लीहमेदोगुदातिहत् ॥ २१९ ॥ महामुंडी च तुल्या हि गुगैरुता महर्षिभिः । मुण्डी, भिक्षु, श्रावणी, तपोधना, श्रावणाहा, मुण्डितिका, श्रवणशी पिका यह गोरखमुण्डीके नाम हैं। दूसरी मुण्डी महाश्रावणी, भूकदंविका. कदंवपुष्पिका अव्यथा, अतितपस्विनी इन नामों वाली है। दोनों प्रकारकी मुंडियां पाकमें कटु, वीर्य में उष्ण, मधुर, हलकी, बुद्धिवर्द्धक तथा गंड; अपची, कुष्ठ, कृमि, योनिरोग, पांडु, श्लीपद, अरुचि, अपस्मार, प्लीहा, मेद और बवासीर इनको दूर करती है । मुंडो और महामुंडी गुणोंमें एक जैसी है ॥ २१६--२१९ ॥
____ अपामार्गः। अपामार्गस्तु शिखरी ह्यधःशल्यो मयूरकः । मर्कटी दुग्रहा चापि किणही खरमंजरी ॥२२० ॥
अपामार्गः सरस्तीक्ष्णो दीपनस्तितकः कटुः। पाचनो नावनश्छर्दिकफमेदोऽनिलापहः ॥२२१ ॥ निहंति गुजाध्मानाशः कण्डुशूलोदरापचीः । अपामार्ग, शिखरी, अधःशल्य, मयूरक, मर्कटी, दुर्ग्रहा, किणही और खरमंजरी यह अपामार्गके नाम हैं । हिंदीमें इसे पुठकंडा और प्राधा. मारा कहते हैं । अपामार्ग-दस्तापर, तीक्ष्ण, दीपन, कढ़, पाचन तथा बीक, वमन, कफ, मेद, वायु, हृद्रोग, अफारा, अश, खुजली, शूल, उदर रोग और अपचीको दूर करता है ॥ २२० ॥ २२१ ॥
रक्तापामार्गः। रक्तोऽन्यो वशिरो वृन्तफलो धामागवोऽपि च २२२ प्रत्यकपर्णी केशपर्णी कथिता कपिपिप्पला। अपामार्गोऽरुणो वातविष्टंभी कफहद्धिमः ॥२२३॥