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( १२८) भातप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । रूक्षः पूर्वगुणैन्यूनः कथितो गुणवेदिभिः। अपामार्गफलं स्वादु रसे पाके च दुर्जरम् ॥२२॥ विष्टंभि वातलं रूक्षं रक्तपित्तप्रसादनम् । रक्तअपामार्ग, वशिर, वृन्तफल, धामार्गव, प्रत्यकूपर्णी, केशपर्णी और कपिपिप्पला यह लाल अपामार्गके नाम हैं। लाल अपामार्ग--वायुकारक, विष्टभकारक, कफनाशक, शीतल, क्ष पौर अपामार्गसे गुणोंमें हीन है।
अपामार्गके फल-रसमें स्वादु, पाकम दुर्जर, विष्टभी, वातकारक,रूखे, रक्त और पित्तको प्रसन्न करनेवाले हैं ॥ २२२-२२४ ॥
__ कोकिलाक्षः। कोकिलावस्तु काकेक्षुरिक्षुरः क्षुरिकः क्षुरः ॥२२५॥ भिक्षः कांडेक्षरप्युक्त इक्षुगन्धेक्षवालिका। क्षुरिकः शीतलो वृष्यास्वाद्वम्लपिच्छलस्तथा २२६ तितो वातामशोथाश्मतृष्णादृष्टयनिलास्रजित् । कोकिलाक्ष, काकेक्षु, इक्षुर, क्षुरिक, भुर, भिक्षु, काण्डेच, इक्षुगन्धा और क्षुवालिका यह कोकिलाक्षके नाम हैं। हिंदी भाषामें इसे तालमखाना कहते हैं। तालमखाना--शीतल, वीर्यवर्धक, मधुर अम्म, पिच्छल और तिक्त है। तथा यु, आम, शोथ, पथरी, प्यास, दृष्टिदोष, वात पौर रक्तविकारको जीतनेवाला है ॥ २२५ ॥ २२६ ॥
अस्थिसंहारी। ग्रंथिमानस्थिसंहारी वज्रांगी चास्थिशृङ्खला २२७
अस्थिसंहारिकः प्रोक्तो वातश्लेष्महरोऽस्थियुक् । उष्णः सरः कृमिघ्नश्च दुर्नामा चाक्षिरोगहत्॥२२८॥ लक्षः स्वादुर्लघुर्वृष्यः पाचनः पित्तलः स्मृतः।