________________
( १२६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
यबास दुरालभा। यासो यवासो दुःस्पर्शो धन्वयासः कुनाशकः । दुरालभा दुरालंभा समुद्रांता च रोदनी ॥ २१३ ॥ गांधारी कच्छुरानंता कषाया दुरभा ग्रहा। यासः स्वादुः सरस्तिक्तस्तुवरः शीतलो लघुः२१४॥ कफमेदोमदभ्रांतिपित्तास्रकुष्ठकासजित् । तृष्णा विसर्पवातास्रवमिज्वरहरः स्मृतः ॥२१॥
यवासस्य गुणैस्तुल्या बुधैरुक्ता दुरालभा। • यास, यवास, दुस्पर्श, धन्वयास, कुनाशक, दुरालभा, दुरालंभा समुद्रांता, रोदनी, गान्धारी, कच्छुरा, अनंता, कषाया,दुरभा और ग्रहा यह जवासेके नाम हैं। जवासा-मधुर, दस्तावर, तिक्त, कसला,शीतन
और हल्का है। तथा कफ, मेद, मद, भ्रम, पित्त, रक्त, कुष्ठ, खांसी, प्यास, विसर्प, वातरक्त, वमन, ज्वर इनको हरनेवाला हैं । जवासा,
और दुरालभा एक जातिके क्षुप हैं। अम्बाला जिलामें जवासा और झासाके नामसे बहुत मिलता है ॥२१३-२१५ ॥ .
मुण्डा । मुंडी भिक्षुरपि प्रोक्ता श्रावणी च तपोधना॥२१६॥ श्रावणाह्वा मुण्डितिका तथा श्रावणशीर्षिका।। महाश्रावणिका त्वन्या सा स्मृता भूकदंबिका २१७ कदंबपुष्पिका च स्यादव्यथातितपस्विनी । मुण्डितिका कटुः पाके वीर्योष्णा मधुरा लघुः२१८ मेध्या गंडापचीकुष्ठकृमियोन्यतिपांडुनु ।