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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
( १२५ ) दाना रेचक, तिक्त, केशोंको बढानेवाला, मोह और भ्रमको हरनेवाला बौर उष्ण है । तथा उदररोग, प्लीहा, वातरक्त, कफ, वायु, आमवात, उदावर्त, मद और बढे हुए विषविकार को दूर करता है । २०६ - २०८ ॥
शरपुंखा । शरपुंखा प्लीहशत्रुर्नीलवृक्षाकृतिश्च सा ॥ २०९ ॥ शरपुंखा यकृत प्लीहगुल्मत्रण विषापहा । तिक्तः कषायः कासास्रश्वासज्वरहरो लघुः ॥२१० ॥
शरखा, प्लीहशत्रु, नीलवृक्षाकृति यह सरपुंखाके नाम हैं। हिंदीमें इसे सरफों का कहते हैं । अंग्रेजीमें Purpose Tebhrosia कहते हैं । सरपुंखा - यकृत, प्लीहा, गुल्म, व्रण और विषको हरनेवाली है तथा तिक्त और कषाय है । एवं कास, रक्तविकार, श्वास, ज्वरको हरनेवाली है मोर हल्की है ॥ ३०९ ॥ २१० ॥
वृद्धदारकः ।
वृद्धदारक आवेगी छत्रांगी रिष्यगंधिका । वृद्धदारः कषायोष्णः कटुस्तिक्तो रसायनः ॥ २१६ ॥ वृष्यो वातामवातार्शःशोथमेहकफप्रणुत । शुकायुर्बलमेवाभिस्वरकांतिकरः सरः ॥ २१२ ॥
वृद्धदारक, आवेगी, छत्रांगी, रिष्यगंधिका यह वृद्धदारुके नाम हैं हिन्दी में इसे विधायरा कहते हैं। शिमला प्रान्तमें इसे बुड्ढनकी बेल कहते हैं । बिधायरा- कषाय, उष्ण, कटु, तिक्त, रसायन, बीर्यवर्धक, वातनाशक और आमवात, अर्श, सूजन, प्रमेह प्रौर कफको नाश करता है । तथा बीर्य, आयु, बल, बुद्धि, जठराग्नि, स्वर और कान्तिको बढ़ानेवाला और दस्तावर है || २११ ॥ २१२wanam