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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१११)
टंकारी। टंकारी वातजित्तिक्ता श्लेष्मघ्नी दीपनी लघुः।
शोथोदरव्यथाहंत्री हिता कोष्टविसर्पिणाम् ॥१३६॥ . टंकारी-वातको जीतनेवाली, तिक्त, कफनाशक, दीपन, हल्की, शोथ पौर उदरपीडाको नष्ट करनेवाली, तथा कोष्ट और विसर्पके लिये हितकारी है ॥ १३६ ॥
वेतसः । वेतसो नम्रकः प्रोक्तो वानीरो वंजुलस्तथा । अभ्रपुष्पश्च विदलो रथशीतश्च कीर्तितः ॥१३७॥ वेतसः शीतलो दाहशोथार्थोयोनिरुक्मणुत् । इंति वीसर्पकृच्छास्त्रपित्तश्मरिकफानिलान् ॥१३८॥ वेतम, नम्रक, वानीर, वंजुल, अधपुष्प, विदल और रथशीत यह व्यूस (वेतम) के नाम हैं।
वेतस-शीतल है और दाह, शोथ, अर्श, योनिरोग, विसर्प, कृच्छ, रक्त. पित्त, पथरी, कफ और वातका नाश करती है ॥ १३७ ॥ १३८॥
जलवेतसः। निकंचकः परिव्याधो नादेयी जलवेतसः ।
जलजो वेतसः शीतः संग्राही वातकोपनः ॥१३९॥ • निकुंचक, परिव्याध, नादेयी, जल घेतल, जलज यह जलवततके नाम हैं । जलवेतस-शीत, ग्राही पौर वातको बढ़ानेवाली है ॥ १३९ ॥
इज्जलः। इजलो हिज्जलश्चापि निचुलश्चांबुजस्तथा । जलवेतसववेद्यो हिजलोऽयं विषापहः ॥ १४० ॥ इन्जल, हिजल, निचुल और अंबुज यह हिजलक नाम हैं। इसके सब गुण जलवेतस ही हैं। जैसे विशेषशासे यह विषनाशक है॥१४०