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( ११०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । लांगूली शूकशिंबी च सैव प्रोक्ता महर्षिभिः॥१३॥ कपिकच्छुभृशं वृष्या मधुरा बृंहणी गुरुः तिक्ता वातहरी बल्या कफपित्तास्रनाशिनी ॥१३२॥ तदीजं वातशमनं स्मृतं वाजीकरं परम् । कपिकच्छु, पारमगुप्ता, रिष्यप्रोक्ता, मर्कटी,अजहा, कण्डरा, अध्यंडा, दुःस्पर्शा, प्रावृषायणी, लांघुली, शुकशिंबी यह कौंचके नाम हैं। इसे अंग्रेजीमें Cowhedge कहते हैं।
कौंच-मस्यन्त वीर्यवर्धक, मधुर, धातुओंको पुष्ट करनेवाली, भारी, तिक्त, वातनाशक, बलवर्धक तथा कफ, पित्त और रक्तविकारोंको नष्ट करनेवाली है । कौंचका बीज-वातनाशक, स्मृतिवर्धक और परम वाजीकर है । १३०--१३२॥
रोहिणी। मांसरोहिण्यतिविषा वृत्ता चर्मकषा कृशा ॥१३३॥ प्रहारवल्ली विकसा वीरवत्यपि कथ्यते । स्यान्मासरोहिणी वृष्या सरादोषत्रयापहा ॥१३४॥ मांसरोहिणी, अतिविषा, वृता, चर्मकषा, कृशा, प्रहारपल्ली, विकसा और वीरबती यह रोहिणीके नाम हैं। रोहिणी-वीर्यवर्धक, दस्तावर और त्रिदोषनाशक है ॥ १३३ ॥ १३४ ॥
' चिल्लकः। चिल्लको वातनिहर्हारी श्लेष्मघ्नो धानुपुष्टिकृत् ।
आग्नेयो विषवद्यस्य फलं मत्स्यनिषूदनम्॥१३५॥ चिल्लछ- वातनाशक, कफनाशक, धातुओंकी पुष्टि करनेवाला और अग्निगुण भूयिष्ठ है। इसका फल विषसदृश मच्छियोंको मार डालता
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