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हरतिक्यादिनिघण्टुः भा. टी. । करंजी स्तंभनी तिक्ता तुवरा कटुपाकिनी । वीर्योष्णा वमिवत्ता कृमिकुष्ठप्रमेहजित १२६॥ उदकी, पथ, हस्तिवादणी, कर्कटी, वायसी, करंजी, करभंजिका यह तीसरे करंजु एके नाम हैं ।
करंजी - वीर्यस्तंभक, तिक्त, कषाय, पाकवें कटु, ऊष्णवीर्य तथा वमन पित्त, अर्श, कृमि, कोट और प्रमेहको नष्ट करनेवाली है ॥ १२५ ॥ १२६ ॥ श्वेतरक्तगुंजे ।
श्वेता गुञ्जच्चटा प्रोक्ता कृष्णला चापि सा स्मृता । रक्ता सा काकचिची स्यात्काकणतीच रक्तिका १२७ काकादनी काकपीलुः सा स्मृतांगारवल्लरी । गुञ्जाद्वयं तु केश्यं स्याद्वातपित्तज्वरापहम् ॥ १२८ ॥ मुखशोषभ्रम श्वासतृष्णामदविनाशिनी । नेत्रामयहरं वृष्यं बल्यं कंडुव्रणापहम् ॥ १२९ ॥ कृमींद्रलुप्तकुष्ठानि रक्ता च धवलापि च ।
सफेद घुंघुचीको उच्चटा और कृष्णला कहते हैं। लाल घुंघुचोको काकचिची, काकांती, रक्तिका, काकादनी, काकपीलू और अंगारवलरी कहते हैं। दोनों घुघुची रक्तकके नामसे प्रसिद्ध हैं ।
दोनों घुघुचियें - केश, वीर्य और बलवर्धक तथा वात, पित्त, ज्वर, मुख शोष, भ्रम, श्वास, प्यास, मद, नेत्ररोग, खुजली, व्रण, कृमि, इंद्रलुप्त और कोढको नष्ट करनेवाली हैं, खानेले विषका प्रभाव करती हैं ।। १२७-१२९ ।।
कपिकच्छुः । कपिकच्छूरात्मगुप्ता रिष्यप्रोक्ता च मर्कटी ॥ १३० ॥ अजहा कण्डुराध्यंडा दुःस्पर्शा मावृषायणी ।