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(८२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
लामजक-शीतल, तिक्त, हलका तथा त्रिदोष,रक्तविकार,त्वचाके रोग, स्वेद, कृच्छ्र, दाह और रक्तपित्तका नाश करनेवाला है ॥ १८॥ १९ ॥
एलावालुकम् । एलवालुकमैलेयं सुगंधि हरिवालुकम् । ऐलवालुकमैलालु कपित्थफलमीरितम् ॥२०॥ ऐलालु कटुकं पाके कषायं शीतलं लघु। हंति कण्डूव्रणच्छदितृट्कासारुचिदुजः ॥ २१॥ बलासविषपित्तास्रकुष्ठमूत्रगदक्रिमीन् । एलवालुक, ऐलेय, सुगन्धि, हरिवालुक, ऐलवालुक, ऐलाल और कपित्थफल यह एलके संस्कृत नाम हैं।
एलवा-कटु, पाकमें कसैला, शीतल, हलका तथा खुजली, व्रण, वमन, प्यास, कास, अरुचि, हृदयके रोग, कफ, विष, पित्त, रक्तविकार, कोढ, मूत्ररोग तथा कृमियोंको नाश करनेवाला है ॥२०॥२१॥
कुटन्नटम् । कुटनटं दासपुरं वानेयं परिपेलवम् ॥ २२॥ प्लवगोपुरगोनदै कैवर्ती मुस्तकानि च । मुस्नावत्पेलवपुटं शुकाव स्याद्वितुनकम् ॥ २३॥ वितुन्नकं हिमं तिक्तं कषायं कटुकांतिदम् । कफपित्तास्रवीसर्पकुष्ठकंडूविषप्रणुत् ॥२४॥ कुटनट, दास, वानेय, परिपेलव, पूव, गोपुर, गोनर्द, कैवर्ती तथा सुस्तक यह केवटीमोथेके नाम हैं।केवटीमोथा मोथेके समान कोमल पत्रोंवाला तथा शुकके समान कांतिवाला होता है और उसको वितुनक
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वितुनक-शीतल, तिक्त, कसैला, कड, कांतिवर्धक तथा कफ, पित्त, रक्तविकार, विसर्प, कोढ, खुजली और विष इनको नष्ट करता है। २२-२४॥
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