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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.।
(८३)
स्पृका।
स्पृक्कास्त्रम् ब्राह्मणी देवी मरुन्माला लता लघुः । समुद्रांता वधूः कोटिवर्षालंकोपकेत्यपि ॥२५॥ स्पृका स्वाद्वी हिमा वृष्या तिक्ता निखिलदोषनुत् कुष्ठकण्डूविषस्वेददाहाव्यज्वररक्तहृत् ॥ २६॥ . स्पृक्का, अस्नग,ब्राह्मणी, देवी, मरुन्माला, लता, लघु, समुद्रांता, वध, कोटिव और अलंकोपका यह असवरगके नाम हैं।
स्पृका-मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, तिक्त, त्रिदोषनाशक तथा कुष्ट खुजली विष, स्वेद, दाह, पाढयवात, ज्वर तथा रक्तविकारको नष्ट करने वाली है॥२५॥२६॥
पर्पटी। पपटी रंजनी कृष्णा जतुकी जननी जनिः। जतुकृष्णा िनसंस्पर्शा जतुकृच्चक्रवर्तनी ॥ २७॥ पर्पटी तुवरा तिक्ता शिशिरा वर्णकृल्लघुः । विषव्रणहरी कण्डूकफपित्तास्रकुष्ठनुत् ॥ २८॥ पर्पटी, रजनी, कृष्णा, जतुकी, जननी, जनि, जतुकृष्णा, अग्निसंस्पा , जतुकृत और चक्रवर्तिनी यह पर्पटीके नाम हैं।
पर्पटी-कषाय, तिक्त, शीतल, वर्णको उत्तम करनेवाली, हलकी तय विष, व्रण, खुजली, कफ, पित्त, रक्तविकार और कुष्ठको नष्ट करनेवाली है॥२७॥२८॥
नलिका। नलिका विद्रुमलता कपोतचरणा नटी। धमन्यंजनकेशी च निर्मथ्या सुषिरा नली ॥ २९ ॥