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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (८१) तालीलपत्र-हलका, तीक्षण, उष्ण तथा श्वास, कास, कफ, वात, अरुचि, गुल्म, आम, अग्निकी मन्दता तथा क्षयको नष्ट करता है ॥१४॥
कोलम् । ककोलं कोलकं प्रोकं तथा कोशफलं स्मृतम् ॥१६॥ कक्कोलं लघु तीक्ष्णोष्णं तितं हृद्यं रुचिप्रदम् ।
आस्यदौर्गभ्यहृद्रोगकफवातामयांध्यत् ॥ १६॥ कक्कोल, कोटक और कोशफल यह कंकोन के नाम हैं। इसे हिंदीमें कंकोल, फारसीमें कवाबह और अंग्रेजीमें Cubeba Pepper कहते हैं।
कंको-हलका, तीक्ष्ण, उष्ण, विक्त, हइयका प्रय, रुपकारक तथा मुखकी दुर्गधता, हृदयके राग, वात, कफ और अन्धताको हरनेवाला है॥१५॥ १६॥
गन्धकोकिला, गन्धमालती। स्निग्धोष्णा कफ हत्तिक्ता सुगन्धा गंधकोकिला। गंवकोकिलया तुल्या विज्ञेया गंधमालती ॥ १७ ॥ गन्धकोकिला-स्निग्ध, कफको हरवानी, तिक्त और सुगन्धवाली है। गन्धकोकिलाके समान ही गबमाल ती जाननी ।। १७ ।।
ल.मजाम्। लामजकं सुनालं स्थादमृगा लयं लघु । इष्टकावथकं सेव्यं नलदं चावदातकम् ॥१८॥ लामजकं हिमं तितं लघु दोषत्रयास्रजित् । त्वगामयस्वे कृच्छदाहपितास्ररोगनु । ॥ १९ ॥ लाम जक, तुनाल, अमृणाल, लय, लघु, इष्टकावथक, सेन्य, नसद भोरपदातक यह लामज्जक नाम है।
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